11-गिरजाबंध हनुमान मंदिर - रतनपुर -
छत्तीसगढ़
(Girijabandh
Hanuman Temple - Ratnpur - Chhattisgarh)
गिरजाबंध हनुमान मंदिर - रतनपुर - छत्तीसगढ़ (Girijabandh Hanuman Temple - Ratnpur - Chhattisgarh) |
पवन पुत्र व राम भक्त हनुमान को युगों से लोग पूजते आ रहे हैं.
उन्हें बाल ब्रह्मचारी भी कहा जाता है जिस कारण स्त्रियों को उनकी किसी भी मूर्ति
को छूने से मना किया गया है। वे देवता रूप में विभिन्न मंदिरों में पूजे जाते
हैं लेकिन एक ऐसा मंदिर भी है जहां पर हनुमान को पुरुष नहीं बल्कि स्त्री के रूप
में पूजा जाता है।
आपको सुनकर आश्चर्य लगेगा, लेकिन दुनिया में एक मंदिर ऐसा भी है जहां हनुमान पुरुष नहीं बल्कि स्त्री
के वेश में नजर आते हैं। यह प्राचीन मंदिर बिलासपुर के पास है। हनुमानजी के स्त्री
वेश में आने की यह कथा कोई सौ दौ सौ नहीं बल्कि दस हजार साल पुरानी मानी जाती है।
गिरजाबंध हनुमान मंदिर - रतनपुर - एक अति प्राचीन मंदिर जहाँ स्त्री रूप में होती है हनुमान कि पूजा |
गिरजाबंध हनुमान मंदिर ,रतनपुर में एक अति प्राचीन मंदिर है, जहाँ हनुमान कि
स्त्री रूप में पूजा होती है, रतनपुर स्थान बिलासपुर से 25
कि. मी. दूर है । इसे महामाया नगरी भी कहते हैं। यह देवस्थान पूरे
भारत में सबसे अलग है। इसकी मुख्य वजह मां महामाया देवी और गिरजाबंध में स्थित
हनुमानजी का मंदिर है। खास बात यह है कि विश्व में हनुमान जी का यह अकेला ऐसा मंदिर
है जहां हनुमान नारी स्वरूप में हैं। इस दरबार से कोई निराश नहीं लौटता। भक्तों की
मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था
।पौराणिक और एतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस देवस्थान के बारे में ऐसी
मान्यता है कि यह लगभग दस हजार वर्ष पुराना है। एक दिन रतनपुर के राजा पृथ्वी
देवजू क़ा ध्यान अपनी शारीरिक अस्वस्थता की ओर गया। वे विचार करने लगे-मैं इतना बडा
राजा हूं मगर किसी काम का नहीं। मुझे कोढ़ का रोग हो गया है। अनेक इलाज करवाया पर
कोई दवा काम नहीं आई। इस रोग के रहते न मैं किसी को स्पर्श कर सकता हूं। न ही किसी
के साथ रमण कर सकता हूं, इस त्रास भरे जीवन से
मर जाना अच्छा है। सोचते सोचते राजा को नींद आ गयी।
राजा ने सपने में देखा कि संकटमोचन हनुमान जी उनके सामने हैं,
भेष देवी सा है, पर देवी है नहीं, लंगूर हैं पर पूंछ नहीं जिनके एक हाथ में लड्डू से भरी थाली है तो दूसरे
हाथ में राम मुद्रा अंकित है। कानों में भव्य कुंडल हैं। माथे पर सुंदर मुकुट
माला। अष्ट सिंगार से युक्त हनुमान जी की दिव्य मंगलमयी मूर्ति ने राजा से एक बात
कही।
गिरजाबंध हनुमान मंदिर - रतनपुर, एक अति प्राचीन मंदिर |
हनुमानजी ने राजा से कहा कि हे राजन् मैं तेरी भक्ति से
प्रसन्न हूं। तुम्हारा कष्ट अवश्य दूर होगा। तू मंदिर का निर्माण करवा कर उसमें
मुझे बैठा। मंदिर के पीछे तालाब खुदवाकर उसमें स्नान कर और मेरी विधिवत् पूजा कर।
इससे तुम्हारे शरीर में हुए कोढ़ का नाश हो जाएगा। इसके बाद राजा ने विद्धानों से
सलाह ली। उन्होंने राजा को मंदिर बनाने की सलाह दी। राजा ने गिरजाबन्ध में मंदिर
बनवाया। जब मंदिर पूरा हुआ तो राजा ने सोचा मूर्ति कहां से लायी जाए। एक रात
स्वप्न में फिर हनुमान जी आए और कहा मां महामाया के कुण्ड में मेरी मूर्ति रखी हुई
है। तू कुण्ड से उसी मूर्ति को यहां लाकर मंदिर में स्थापित करवा। दूसरे दिन राजा
अपने परिजनों और पुरोहितों को साथ देवी महामाया के दरबार में गए। वहां राजा व उनके
साथ गए लोगों ने कुण्ड में मूर्ति की तलाश की पर उन्हें मूर्ति नहीं मिली। हताश
राजा महल में लौट आए।
संध्या आरती पूजन कर विश्राम करने लगे। मन बैचेन हनुमान जी के
दर्शन देकर कुण्ड से मूर्ति लाकर मंदिर में स्थापित करने को कहा है। और कुण्ड में
मूर्ति मिली नहीं इसी उधेड़ बुन में राजा को नींद आ गई। नींद का झोंका आते ही सपने
में फिर हनुमान जी आ गए और करने लगे- राजा तू हताश न हो मैं वहीं हूं तूने ठीक से
तलाश नहीं किया। जाकर वहां घाट में देखो जहां लोग पानी लेते हैं, स्नान करते हैं उसी में मेरी मूर्ति पड़ी हुई
है।
राजा ने दूसरे दिन जाकर देखा तो सचमुच वह अदभुत मूर्ति उनको
घाट में मिल गई। यह वही मूर्ति थी जिसे राजा ने स्वप्न में देखा था। जिसके अंग
प्रत्यंग से तेज पुंज की छटा निकल रही थी। अष्ट सिंगार से युक्त मूर्ति के बायें
कंधे पर श्री राम लला और दायें पर अनुज लक्ष्मण के स्वरूप विराजमान, दोनों पैरों में निशाचरों दो दबाये हुए। इस
अदभुत मूर्ति को देखकर राजा मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए। फिर विधिविधान पूर्वक
मूर्ति को मंदिर में लाकर प्रतिष्ठित कर दी और मंदिर के पीछे तालाब खुदवाया जिसका
नाम गिरजाबंद रख दिया। मनवांछित फल पाकर राजा ने हनुमान जी से वरदान मांगा कि हे
प्रभु, जो यहां दर्शन करने को आये उसका सभी मनोरथ सफल हो। इस
तरह राजा प्रृथ्वी देवजू द्वारा बनवाया यह मंदिर भक्तों के कष्ट निवारण का एसा
केंद्र हो गया, जहां के प्रति ये आम धारणा है कि हनुमान जी
का यह स्वरूप राजा के ही नहीं प्रजा के कष्ट भी दूर करने के लिए स्वयं हनुमानी
महाराज ने राजा को प्रेरित करके बनवाया है।
इस दक्षिण मुखी हनुमान जी की मूर्ति में पाताल लोक़ का चित्रण
हैं। रावण के पुत्र अहिरावण का संहार करते हुए उनके बाएं पैर के नीचे अहिरावण और
दाये पैर के नीचे कसाई दबा है। हनुमान जी के कंधों पर भगवान राम और लक्ष्मण को
बैठाया है। एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में लड्डू से भरी थाली है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 84 किलोमीटर दूर रमई पाट में भी एक ऐसी ही
मूर्ति स्थापित है। राजा को मिली मूर्ति और रमई पाट की इस मूर्ति में अनेक विशेष समानताएं
हैं। एक अद्भुत तेज है इस मूर्ति में-
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 84 किलोमीटर दूर रमई पाट में भी एक ऐसी ही मूर्ति स्थापित है. |
इसका मुख दक्षिण की ओर है और साथ ही मूर्ति में पाताल लोक़ का
चित्रण भी है।
मूर्ति में हनुमान को रावण के पुत्र अहिरावण का संहार करते हुए
दर्शाया गया है।
यहां हनुमान के बाएं पैर के नीचे अहिरावण और दाएं पैर के नीचे
कसाई दबा हुआ है।
हनुमान के कंधों पर भगवान राम और लक्ष्मण की झलक है उनके एक
हाथ में माला और दूसरे हाथ में लड्डू से भरी थाली है।
सभी धर्म
प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।
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