2- हनुमानगढ़ी, अयोध्या
जिला फैजाबाद, उत्तर प्रदेश (Hanuman Garhi, Ayodhya)
अयोध्या भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक अति प्राचीन
धार्मिक नगर है। यह फैजाबाद जिला के अन्तर्गत आता है। यह सरयू नदी (घाघरा नदी) के दाएं तट पर बसा है। प्राचीन काल
में इसे 'कौशल देश' कहा जाता था। अयोध्या हिन्दुओं का प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में
एक है।
अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर
बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार
अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की
राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम और जैन
धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों
का जन्म हुआ था। धर्म ग्रंथों के अनुसार अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है।
यहां का सबसे प्रमुख श्रीहनुमान मंदिर “हनुमानगढ़ी” के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजद्वार के सामने ऊंचे टीले
पर स्थित है और यहां से काफी दूर से भी साफ - साफ देखा जा सकता है। कहा जाता है कि
हनुमान यहाँ एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे।
हनुमान को रहने के लिए यही स्थान दिया गया था। हनुमानगढ़ी
जिसे हनुमान जी का घर भी कहा जाता है, यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है। साथ ही ये अधिकार भी दिया कि जो भी
भक्त मेरे दर्शनों के लिए अयोध्या आएगा उसे पहले तुम्हारा दर्शन पूजन करना होगा। जहां
आज भी छोटी दीपावली के दिन आधी रात को संकटमोचन का जन्म दिवस मनाया जाता है। पवनपुत्र
के जन्म दिवस का साक्षी बनना हर भक्त के लिए सौभाग्य की बात होती है। पवित्र नगरी
अयोध्या में सरयू नदी में पाप धोने से पहले लोगों को भगवान हनुमान से आज्ञा लेनी
होती है। नगर के केंद्र में स्थित भगवान
हनुमान के मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करते हैं। इस मंदिर की अपनी मान्यताएं है, जिसमें लोगों की गहरी आस्था है।
यह मंदिर अयोध्या में एक टीले पर स्थित होने के कारन इस मंदिर
तक पहुंचने के लिए भक्तों को लगभग 76 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। इसके
बाद पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच की प्रतिमा के
दर्शन होते हैं, जो हमेशा फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है। मुख्य
मंदिर में बाल हनुमान के साथ अंजनि की प्रतिमा है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस
मंदिर में आने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अंजनिपुत्र की महिमा से
परिपूर्ण हनुमान चालीसा की चौपाइयां हृदय के साथ-साथ मंदिर की दीवारों पर सुशोभित
हैं. इस मंदिर परिसर के चारों कोनो में परिपत्र गढ़ हैं। मंदिर परिसर में मां
अंजनी व बाल ( बच्चे ) हनुमान की मूर्ति है जिसमें हनुमान जी, अपनी मां अंजनी की गोदी में बालक रूप में लेटे है।यह विशाल मंदिर न केवल
धार्मिक दृष्टि से अच्छा है बल्कि वास्तु पहलू से भी इसे बहुत अच्छा माना जाता
है।
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हनुमानगढ़ी, अयोध्या |
रबिया बेगम ने बाडी वाले बाबा हिन्दू साधु के सामने झोली फैलाई
तो बाबा ने बेगम की फरियाद पवनसुत तक पहुँचा
दी । अब रामभक्त ने भी बेगम की आस्था को जाँचने की सोची। स्वप्न में बेगम को आदेश
दिया, इस्लामबाडी के टीले
के नीचे मेरी मूर्ति दबी पड़ी है। उसका उद्धार कर किसी
मन्दिर में स्थापित करो।
सुबह रबिया बेगम दौडी दौडी बाबा के पास आई, स्वप्न का वृतान्त सुनाया। बाबा के निर्देशन
में टीले की खुदाई हुई और दबी हुई मूर्ति को निकाला गया। वही मूर्ति आज अलीगंज के मन्दिर में स्थापित है।
यह तो कहने की आवश्यकता ही नहीं है बेगम ने ही यहाँ पहला मन्दिर बनवाया । मूर्ति
के राज भोग एवं अन्य व्यवस्थाओं के लिये महमूदाबाद रियासत से भूमि मिली । बेगम को
सन्तान सुख प्राप्त हुआ।
अयोध्या स्थित अति प्राचीन हनुमान गढ़ी की स्थापत्य कला दिल्ली
और आगरा के लाल किले की ही एक छवि है। इस विराट मन्दिर के समीप स्थित इमली वन को सुल्तान
मंसूर अली ने लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व बनवाया था।
संत अभयारामदास के सहयोग और निर्देशन में यह विशाल निर्माण
सम्पन्न हुआ। संत अभयारामदास निर्वाणी अखाडा के शिष्य थे और यहाँ उन्होंने अपने
सम्प्रदाय का अखाडा भी स्थापित किया था।
इस मन्दिर के निर्माण के पीछे की एक कहानी है। लगभग दसवीं शताब्दी
के मध्य में सुल्तान मंसूर अली लखनऊ और फैजाबाद का प्रशासक था। एक बार सुल्तान मंसूर
अली का एकमात्र पुत्र बीमार पड़गया। प्राण बचने के आसार नहीं रहे, रात्रि की कालिमा गहराने के साथ ही उसकी नाडी
उखड ने लगी तो सुल्तान ने थक हार कर आंजनेय के चरणों में माथा रख दिया। जब सुल्तान
मंसूर अली ने हनुमान को खुदा कहकर पुकारा तो उन्हें बड़ी ग्लानि हुई, आखिर सुल्तान के खुदा और हनुमान के श्रीराम, में
क्या अन्तर था। हनुमान ने अपने आराध्य को ध्याया और सुल्तान पुत्र की धड कनें प्रारम्भ
हो गई। अपने इकलौते पुत्र के प्राणों की रक्षा होने पर अवध के नवाब मंसूर अली ने बजरंगबली
के चरणों में माथा टेक दिया। जिसके बाद नवाब ने न केवल हनुमान गढ़ी मंदिर का
जीर्णोंद्धार कराया बल्कि तांम्रपत्र पर लिखकर ये घोषणा की कि कभी भी इस मंदिर पर
किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और न ही यहां के चढ़ावे से कोई कर
वसूल किया जाएगा, और 52बीघा भूमि
हनुमान गढी व इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई थी।
अयोध्या के सशस्त्र निर्वाणी अणी (सेना) के महन्त अभय रामदास के
नेतृत्व में 18वीं शताब्दी में नागा
साधुओं ने हनुमान गढ़ी को मुसलमानों से मुक्त कराया । वे सिद्धयोगी भी थे। उनके
मार्गदर्शन में सशस्त्र नागा साधु बड़ी संख्या में विचरणशील थे। उनकी इस सशस्त्र
नागा अणी (सेना) में देशभर के नागा साधु-संत बड़ी संख्या में सम्मिलित थे।
एक दिन महन्त अभय रामदास जब प्रवास में उज्जयिनी से चलकर अयोध्या
आए, तो उन्होंने अपनी सशस्त्र नागा अणी (सेना) का
पड़ाव सरयू नदी के तट पर डाला। वहां उन्हें पता चला कि अयोध्या में त्रेतायुगीन
श्रीराम राज्य के समय भगवान श्री राम के राजमहल (रामकोट) के पूर्वी द्वार पर स्थित
हनुमान जी के वासस्थान पर मुसलमानों ने कब्जा करके वहां नमाज पढ़नी शुरू कर दी है। हनुमान
जी का वह आवास मात्र एक “टीले” के रूप
में रह गया है, जिसे लोग “हनुमान टीला”
कहने लगे हैं। यह दृश्य महन्त अभय रामदास को कचोटने लगा। एक दिन वे
अपनी सशस्त्र नागा अणी (सेना) लेकर हनुमान टीले पर चढ़ आए और वहां से मुसलमानों को
भगा दिया। मुसलमान वहां से ऐसे भागे कि पलटकर हनुमान गढ़ी नहीं आए। महन्त अभय
रामदास नियमपूर्वक प्रत्येक आश्विन शुक्ल अष्टमी को अपनी अणी (सेना) सहित
शस्त्र-पूजन किया करते थे। उनकी तलवार तब हवन कुण्ड के समीप ही रखी होती थी। बाद
में मुसलमानों ने कई बार हनुमान गढ़ी पर धावा बोला, पर महन्त
अभय रामदास ने हर बार उन्हें मार भगाया। महन्त अभय रामदास तब से स्थायी रूप से
हनुमान गढ़ी में ही निवासकर पूजा अर्चना करने लगे। उनकी सशस्त्र साधु मण्डली भी
उनके साथ ही वहीं रहती थी।
ये नागा साधु उज्जैन, हरिद्वार, प्रयाग और गंगासागर से संबंधित रहे थे।
उनकी 4 श्रेणियां थीं; 1. सागरिया,
2. उज्जैनिया, 3. हरिद्वारी 4. बसंतिया। प्रयाग से संबंधित नागाओं की 3 अणी (सेना) और
7 अखाड़े हैं, जिनमें एक निर्वाणी अणी (सेना)
का प्रमुख केन्द्र हनुमान गढ़ी ही रहा है। नागा साधु ही हनुमान गढ़ी के महन्त,
पुजारी और उसकी पंचायत के प्रवक्ता होते हैं। नागा पद प्राप्ति के
पूर्व साधु को 2-2 साल की 6 श्रेणियों-यात्री,
छोटा, हुरदंगा, बंदगीदार
आदि नाम वाले स्तरों से गुजरना पड़ता है। बाद में एक बड़े समारोह में उसे नागा पद
प्रदान किया जाता है।
वर्तमान हनुमान गढ़ी को संवारने में राजा टिकैत राय का विशेष
योगदान रहा था। सन् 1915 में अमीर अली ने
हनुमान गढ़ी पर आक्रमण किया था। उसने सुन्नी मुसलमानों को यह कहकर उकसाया कि नागाओं
ने मस्जिद ढहा दी है। उसने सुन्नी मुस्लिम फौज बनाकर हनुमान गढ़ी पर चढ़ाई कर दी,
पर हनुमान गढ़ी के नागा साधुओं और उनका साथ देने वाले हिन्दू जत्थों
ने उन हमलावरों को धूल चाटने पर विवश कर दिया। इस तरह हनुमान गढ़ी सुरक्षित रही। गढ़ी
के सर्वोच्च पदाधिकारी को “गद्दीनशीन” कहकर
पुकारा जाता है।
यह मंदिर काफी बड़ा है। मंदिर के चारों ओर निवास योग्य स्थान
बने हैं, जिनमें साधु-संत रहते
हैं। हनुमानगढ़ी के दक्षिण में सुग्रीव टीला व अंगद टीला नामक स्थान हैं।
आज भी हनुमान गढ़ी के नागा साधु कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को
हनुमत जयन्ती तो मनाते ही हैं, साथ
ही कार्तिक शुक्ल एकादशी को सशस्त्र परिक्रमा करते समय उनके हाथ में “निशान” (ध्वज) भी रहता
है। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल एकादशी को भी वे ध्वज के साथ ही शस्त्र-पूजन भी करते
हैं। आश्विन शुक्ल को नागा अखाड़ों में शस्त्र-पूजन करके हनुमान गढ़ी से चलकर
अयोध्या नगरी में निशान-यात्रा की जाती है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को इस
मंदिर में भक्तो का ताँता लगता है ।
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हनुमानगढ़ी, अयोध्याहनुमानगढ़ी मंदिर अयोध्या में स्थित है। यह मंदिर अयोध्या में सरयू नदी के दाहिने तट पर |
इस हनुमान मंदिर के निर्माण के कोई स्पष्ट साक्ष्य तो नहीं मिलते
हैं लेकिन कहते हैं कि अयोध्या न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी, लेकिन फिर भी एक स्थान जो हमेशा अपने मूल रूप
में रहा वो हनुमान टीला है जो आज हनुमान गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है।
लंका से विजय के प्रतीक रूप में लाए गए निशान भी इसी गढ़ी में
रखे गए जो आज भी खास मौके पर बाहर निकाले जाते हैं और जगह-जगह पर उनकी पूजा-अर्चना
की जाती है।
होली से ठीक पहले “रंग भरी एकादशी” उन खास दिनों में से एक है जब ये निशान बाहर निकाले जाते हैं
और भक्त उनकी आराधना कर खुशियां मनाते हैं। यहीं से साधु संतों की होली के साथ
देशभर में होली की शुरुआत होती है। यहां पर हनुमान लला की आराधना और दर्शन का
विशेष समय निश्चित है। कहते हैं विशेष मुहूर्त में पवनपुत्र की आराधना से भक्तों
की हर मुराद पूरी होती है। हनुमान जी के प्रताप से अपने को अभिभूत करने के लिए
दुनिया भर से आने वाले भक्तों का यहां तांता लगा रहता है और सच्चे मन में हनुमान
लला के इस दरबार में सिर झुका भर देने से पवनपुत्र अपने भक्तों के समस्त कष्टों का
निदान कर देते हैं।
कलियुग में सबसे ज्यादा भगवान शंकर के ग्यारवें रुद्र अवतार
श्रीहनुमानजी को ही पूजा जाता है इसीलिए हनुमानजी को कलियुग का जीवंत देवता भी
माना जाता है। चाहे किसी भी प्रकार की समस्या हो भगवान हनुमान अपने भक्तों की हर समस्या
का निदान तुरंत कर देते हैं। वैसे तो भारत भर में हनुमानजी के लाखों मंदिर हैं
लेकिन उनमें सबसे ज्यादा इस मंदिर की अपनी खास विशेषता है जिसके चलते यहां हनुमानगढ़ी, अयोध्या में हनुमानजी के दर्शनों के लिए
भक्तों का सैलाब उमड़ता है।
सभी धर्म
प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।
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