Tuesday, 3 February 2015

7. मेहंदीपुर बालाजी मंदिर, मेहंदीपुर, राजस्थान (Mehandipur Balaji Temple, Mehandipur, Rajasthan)



7. मेहंदीपुर बालाजी मंदिर, मेहंदीपुर, राजस्थान
(Mehandipur Balaji Temple, Mehandipur, Rajasthan) 
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर

श्री हनुमान बालाजी मंदिर मेहंदीपुर, तहसील टोडाभीम, जिला करौली राजस्थान, के पास दो पहाडिय़ों के बीच बसा हुआ मेहंदीपुर नामक स्थान है। दो पहाडिय़ों के बीच की घाटी में स्थित होने के कारण इसे घाटा मेहंदीपुर भी कहते हैं। वर्तमान इस मंदिर कि पिछली दीवारें और गर्भगृह कभी सवाई माधोपुर जिले के अंतर्गत  पड़ता था। तथा मुख्य द्वार और मंदिर का आधा भाग जयुपर जिले के अंतर्गत पड़ता था।
जनश्रुति है कि यह मंदिर करीब 1 हजार साल पुराना है। यहां पर एक बहुत विशाल चट्टान में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। इसे ही श्री हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है।
कुछ ऐसा है बालाजी का इतिहास:
प्रारंभ में यहॉ घोर बीहड  जंगल था। घनी झाडि यों में द्रोर-चीते, बघेरा आदि जंगली जानवर पड़े  रहते थे। चोर-डाकुओं का भी भय था। श्री महंतजी महाराज के पूर्वजों को जिनका नाम अज्ञात है, स्वप्न हुआ और स्वप्न की अवस्था में ही वे उठ कर चल दिए। उन्हें पता नहीं था कि वे कहॉ जा रहे हैं और इसी दच्चा में उन्होंने एक बड़ी  विचित्र लीला देखी। एक ओर से हजारों दीपक चलते आ रहे हैं। हाथी-घोड़ो  की आवाजें आ रही हैं और एक बहुत बड़ी फौज चली आ रही हे। उस फौज ने श्री बालाजी महाराज की मूर्ति की तीन प्रदक्षिणाएं कीं और फौज के प्रधान ने नीचे उतर कर श्री महाराज की मूर्ति को साद्गटॉग प्रणाम किया तथा जिस रास्ते से वे आये थे उसी रास्ते से चले गये। गोसॉई जी महाराज चकित होकर यह सब देख रहे थे। उन्हें कुछ डर सा लगा और वे वापिस अपने गॉव चले गए किन्तु नींद नहीं आई और बार-बार उसी विद्गाय पर विचार करते हुए उनकी जैसे ही ऑखें लगी उन्हें स्वप्न में तीन मूर्तियॉ, उनके मन्दिर और विच्चाल वैभव दिखाई पड़ा  और उनके कानों में यह आवाज आई - ''उठो, मेरी सेवा का भार ग्रहण करों। मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करुगा ।'' यह बात कौन कह रहाथा, कोई दिखाई नहीं पड़ा। गोसॉई जी ने एक बार भी इस पर ध्यान नहीं दिया। अन्त में श्री हनुमान जी महाराज ने इस बार स्वयं उन्हें दर्च्चन दिए और पूजा का आग्रह किया।
दूसरे दिन गोसॉई जी महाराज उस मूर्ति के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि चारों ओर से घंटा-घडि याल और नगाडो  की आवाज आ रही है किन्तु दिखाई कुछ नहीं दिया। इसके बाद श्री गोसॉई जी ने आस-पास के लोग इकटठे किए और सारी बातें उन्हें बताई। उन लोगों ने मिल कर श्रीमहाराज की एक छोटी सी तिवारी बना दी और यदा-कदा भोग प्रसाद की व्यवस्था कर दी। कई एक चमत्कार भी श्री महाराज ने दिखाए किंतु यह बढ ती हुई कला कुछ विधर्मियों के दुआर्श्शन  में फिर से लुप्त हो गई। किसी दुआर्श्शन  ने श्री महाराज की मूर्ति को खोदने का प्रयत्न किया। सेकड़ो  हाथ खोद लेने पर भी जब मूर्ति के चरणों का अन्त नहीं आया तो वह हार-मानकर चला गया। वास्तव में इस मूर्ति को अलग से किसी कलाकार ने गढ  कर नहीं बनाया है अपितु यह तो पर्वत का ही अंग है और यह समूचा पर्वत ही मानों उसका 'कनक भूधराकार' द्रारीर है। इसी मूर्ति के चरणों में एक छोटी सी कुण्डी थी जिसका जल कभी बीतता ही नहीं था। रहस्य यह है कि महाराज की बाईं ओर छाती के नीचे से एक बारीक जलधारा निरन्तर बहती रहती है जो पर्याप्त चोला चढ  जाने पर भी बंद नहीं होती।
इस प्रकार तीनों देवों की स्थापना हुई। वि.सं. 1979 में श्री महाराज ने अपना चोला बदला। उतारे हुए चोले को गाड़ियों में भर कर श्री गंगा में प्रवाहित करने हेतु बहुत से आदमी चल दिए। चोले को लेकर जब मंडावर रेलवे स्टेच्चन पर पहुंचे तो रेलवे अधिकारियों ने चोले का लगेज तय करने हेतु उसे तोला किंतु वह तुलने में ही नहीं आया। कभी एक मन बढ  जाता तो कभी एक मन घट जाता। अंत में हार कर चोला वैसे ही गंगा जी को सम्मान सहित भेज दिया गया। उस समय हवन, ब्राह्मण भोजन एवं धर्म ग्रंथों का पारायण हुआ और नए चोले में एक नई ज्योति उत्पन्न हुई जिसने भारत के कोने-कोने में प्रकाच्च फैला दिया।
यहॉ की सबसे बड़ी विच्चेद्गाता यही है कि मूर्ति के अतिरिक्त किसी व्यक्ति विच्चेद्गा का कोई चमत्कार नहीं है। क्या है सेवा, श्रद्धा और भक्ति ? स्वयं श्री महंत जी महाराज भी इस विद्गाय में उतने ही स्पद्गट हैं जितने अन्य यात्रीगण। यहॉ सबसे बड़ा असर सेवा और भक्ति का ही है। चाहे कोई कैसा भी बीमार क्यों न हो, यदि वह सच्ची श्रद्धा लेकर आया है तो श्री महाराज उसे बहुत  स्वास्थ्य लाभ प्रदान करेंगे। इसमें कोई सन्देह नही।
यहॉ की एक जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह यह है कि अन्य तीर्थ स्थानों की तरह न तो यहॉ पण्डे, पुजारी ही यात्रियों से कुछ मांगते हैं और न ही जेबकतरे एवं चोर ही हैं। अगर किसी यात्री का गलत रवैया मिलता है तो उसे तुरंत स्थान छोड ने को विवच्च कर दिया जाता है।
यह स्थान प्रारंभ से ही गोस्वामी निहंग मताधिकारियों के अधिकार में रहा है। इनके प्रकट होने से लेकर अब तक बारह महंत इस स्थान पर सेवा-पूजा कर चुके हैं और अब तक इस स्थान के दो महंत इस समय भी विद्यमान हैं। सर्व श्री गणेच्चपुरी जी महाराज (भूतपूर्व सेवक) श्री किच्चोरपुरीजी महाराज (वर्तमान सेवक)। यहॉ के उत्थान का युग श्री गणेच्चपुरी जी महाराज के समय से प्रारंभ हुआ और अब दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। प्रधान मंदिर का निर्माण इन्हीं के समय में हुआ। वर्तमान समय का वैभव श्री गणेच्चपुरी जी महाराज के सेवाकाल में बढ़ा। वास्तव में इनकी सेवा और साधना इतनी उच्चकोटि की थी कि जिसकी समानता कहीं अन्यत्र नहीं मिल सकती।
मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने की कुचेष्टा की, लेकिन वे असफ़ल रहे । वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई । थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा ।
ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1910 में बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष  पुराना चोला स्वतः  ही त्याग दिया । भक्तजन इस चोले को लेकर समीपवर्ती मंडावर रेलवेस्टेशन पहुंचे, जहां से उन्हें चोले को गंगा में प्रवाहित करने जाना था । ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका लगेज करने लगा, लेकिन चमत्कारी चोला कभी मन भर ज्यादा हो जाता और कभी दो मन कम हो जाता । असमंजस में पड़े स्टेशन मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा और उसने भी बालाजी के चमत्कार को नमस्कार किया ।
इसके बाद बालाजी को नया चोला चढाया गया । यज्ञ हवन और ब्राह्मण भोज एवं धर्म ग्रन्थों का पाठ किया गया । एक बार फ़िर से नए चोले से एक नई ज्योति दीप्यमान हुई । यह ज्योति सारे विश्व का अंधकार दूर करने में सक्षम है ।
किसी ने सच ही कहा है , नास्तिक भी आस्तिक बन जाते हैं , मेंहदीपुर दरबार में ।
इस मंदिर में बजरंग बली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि वह स्वयंभू है। इस मूर्ति के सीने के बाई ओर एक अत्यन्त सूक्ष्म छिद्र है, जिससे पवित्र जल की धारा निरन्तर बह रही है। यह जल बाला जी के चरणों तले स्थित एक कुण्ड में एकत्रित होता रहता है, जिसे भक्तजन चरणामृत के रूप में अपने साथ ले जाते हैं। यह मूर्ति लगभग 1000 वर्ष प्राचीन बताई जाती है, किन्तु मंदिर का निर्माण पिछली सदी में ही कराया गया।
बाला जी महाराज के अलावा यहां श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल कप्तान भैरव की मूर्तियां भी हैं। प्रेतराज सरकार यहां दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं, वहीं भैरव जी कोतवाल के पद पर। इस मंदिर में यह विशेष बात है कि मंदिर में लगाया भोग प्रसाद न कोई लेता है और न किसी को दिया जाता है। और न कोई खाता है। यह प्रसाद अपने घर भी नहीं ले जाया जाता।  
भूत-प्रेतादि उपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों का तांता लगा रहता है। तंत्र-मंत्रादि, उपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी यहां पर बिना किसी दवा-दारू और तंत्र मंत्रादि से स्वस्थ होकर लौटते हैं।
तीनों देवगण को प्रसाद चढ़ाना पड़ता है-
इस मंदिर में तीन देवताओं का वास है-बाल रूप में हनुमान जी, भैंरो बाबा और प्रेत राज सरकार। दुःखी कष्टग्रस्त व्यक्ति को यहां मंदिर पहुंचकर यहां श्री बालाजी ,प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान भैरव, तीनों देवगण को प्रसाद चढ़ाना पड़ता है। बाला जी को लड्डू, प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान भैरव को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस प्रसाद में से दो लड्डू, रोगी को खिलाए जाते हैं, शेष प्रसाद  पशुओं को डाल दिया जाता है। भूत-प्रेतादि स्वतः ही बाला जी महाराज के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं।
प्रेतराज सरकार
बाल बिखेरे महिलाएं सिर घुमा रही हैं! उनके शरीर पर भारी पत्थर भी रखे हैं! उनकी चीत्कार और बचाओ-बचाओ की गुहार भी सुनाई पड़ रही है! एक कोने में महिलाएं कंडे जलाकर धुएं की तरफ अपना सिर करके झूम रही हैं! गलियारे में मैले कुचैले कपड़े पहने महिलाएं और पुरुष बेड़ियों और सांकलों में बंधे हैं! तेज आवाज में बड़बड़ा भी रहे हैं मानो वे गुस्से में हवा से बातें कर रहें हों! चिथड़ों में लिपटे कुछ ऐसे लोग भी पड़े हैं जिनके तन पर पूरी चमड़ी भी नहीं है! ये प्रेतराज सरकार का दरबार है।राजस्थान के दौसा और करौली जिलों को बांटने वाली मेहंदीपुर पहाड़ियों के बीच घाटी में बालाजी मंदिर में यह दरबार हर रोज दो बजे से चार बजे तक लगता है।
बाला जी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं। प्रेतराज सरकार को चावल प्रसाद चढ़ाना पड़ता है और प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। उनकी आरती, चालीसा, कीर्तन, भजन भक्ति-भाव से किए जाते हैं।  
प्रेतराज दरबार
बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है। पृथक रूप से उनकी आराधना-उपासना कहीं नहीं की जाती, न ही उनका कहीं कोई मंदिर है। वेद, पुराण, धर्म ग्रन्थ आदि में कहीं भी प्रेतराज सरकार का उल्लेख नहीं मिलता। प्रेतराज श्रद्धा और भावना के देवता हैं। बाला जी के मंदिर और उनके भक्तों में प्रेतराज सरकार की बहुत अधिक मान्यता है।
कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव जी
कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव जी भगवान शिव के अवतार हैं। भक्तों की थोड़ी सी पूजा-अर्चना से ही वह शीघ्र प्रसन्न हो उठते हैं। भैरव महाराज चतुर्भुजी हैं। उनके हाथों में त्रिशुल, डमरू, खप्पर तथा प्रजापति ब्रा का पांचवां कटा शीश रहता है। भैरव औघड़ बाबा हैं। शंकर भगवान के समान वह नग्न-बदन रहते हैं, किन्तु कमर में बाघाम्बर नहीं, लाल वस्त्र धारण करते हैं। आप शिव जी के समान ही भस्म लपेटते हैं। कोतवाल कप्तान भैरव को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है और मूर्ति पर सिन्दूर का चोला चढाया जाता है। चमेली के सुगंध युक्त तिल के तेल में सिन्दूर घोलकर आपका चोला तैयार किया जाता है। भैरव देव जी बाला जी महाराज की सेना के कोतवाल माने जाते हैं, इसलिए इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है।
कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव जी
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां ऊपरी बाधाओं के निवारण के लिए आने वालों का तांता लगा रहता है। मंदिर की सीमा में प्रवेश करते ही ऊपरी हवा से पीडि़त व्यक्ति स्वयं ही झूमने लगते हैं और लोहे की सांकलों से स्वयं को ही मारने लगते हैं। मार से तंग आकर भूत प्रे
मेंहदीपुर के बाला जी का नाम भक्तों में शक्ति और सामथ्र्य के प्रतीक के रूप में विख्यात है। हनुमान जी के बाल रूप की यहां अर्चना -उपासना की जाती है। बाला जी के दरबार में भूत -प्रेतादि बाधा से ग्रस्त व्यक्तियों का उपचार बिना किसी औषधि, मंत्र-यंत्रादि के चमत्कारिक ढंग से होता है। यहां आकर प्रसाद के रूप में अर्जी करते ही रोगी व्यक्ति का उपचार आरम्भ हो जाता है। यह चमत्कार यहां सहज ही देखा जा सकता है।
यह आवश्यक नहीं कि भूत-प्रेतादि बाधाग्रस्त व्यक्ति ही यहां आते हों, बाला जी के नियमित आराधक भी यहां आते हैं। अनेक घरों में यहां प्रतिष्ठित देवता की नियमित आराधना-उपासना भक्ति भाव से की जाती है।
कुछ लोगों का मानना है कि भूत-प्रेतादि बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति को ही मेंहदीपुर बाला जी जाना चाहिए परन्तु यह बिल्कुल गलत है। देश-विदेश से करोड़ों भक्त नित्यप्रति बालाजी के दरबार में मात्र उनके दर्शन एवं आर्शीवाद प्राप्त करने के लिऐ उपस्थित होते हैं, जबकि उन्हें कोई रोग अथवा कष्ट नहीं होता। कलियुग में बालाजी महाराज ही एक ऐसे देवता हैं जो अपने भक्त को सहज ही अष्ट सिद्धि नव निधि तदुपरान्त मोक्ष प्रदान कर सकते हैं। तादि स्वत: ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं।
कैसे लगती है दरखास्त की अर्जी ?अर्जी का पहला (एक) चरण-
में मुख्य रूप से तीन दरबार हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही पहला बालाजी (हनुमान जी) का दरबार है, फिर दाईं तरफ दूसरा भैरव जी का दरबार और फिर सीढ़ियों से ऊपर जाकर तीसरा प्रेतराज सरकार का दरबार है। मान्यता है कि अब से करीब १००० वर्ष पूर्व तीनों देव यहां प्रकट हुए थे। बालाजी, कोतवाल कप्तान और प्रेतराज सरकार की मूर्तियों को अलग से किसी मूर्तिकार ने गढ़कर नहीं बनाया है बल्कि वे पर्वत का एक हिस्सा हैं। समूचा पर्वत मानो उनका 'कनक भूधराकार' शरीर है। प्रकट होने से अब तक १२ महंत बालाजी की सेवा में रहे हैं। वर्तमान मंदिर महंत गणेशपुरी के सेवाकाल में बना था।
बालाजी महाराज की जय! कोतवाल कप्तान की जय! प्रेतराज सरकार की जय! इन जयकारों के साथ हर रोज सुबह साढ़े छह बजे मंदिर में बालाजी की आरती होती है। उस समय मंदिर परिसर ही नहीं बल्कि बाहर सड़क पर भी भारी भीड़ जमा होती है। बालाजी की आरती संपन्न होने पर सभी श्रद्धालुओं पर पुजारी महाराज छींटे देते हैं। फिर धीरे-धीरे भीड़ छंटती है और केवल दरख्वास्त लगाने वाले लोग ही पंक्ति में खड़े रहते हैं।अर्जी दिन में केवल आठ बजे से ग्यारह बजे तक लगाई जाती है।
पंक्ति में जितने लोग उतनी ही शिकायतें और परेशानियां हैं। किसी का व्यापार इन दिनों मंदा पड़ा है तो किसी की नौकरी छूट गई है, किसी का काम बनते-बनते बिगड़ जाता है तो कोई तमाम मेहनत के बाद भी परीक्षा में सफल नहीं हो रहा है। कोई अपने परिवार में किसी खास के बिगड़े व्यवहार से परेशान है तो किसी को मानसिक परेशानी है या किसी का प्रिय असाध्य बीमारी से गुजर रहा है, किसी की शादी नहीं हो रही है तो कोई शादी के वर्षों बाद भी संतानहीन है। अपनी हर मुश्किल और बाधाओं को दूर करवाने के लिए लोग इस दरबार में हाजिर हैं और अपनी बारी की प्रतीक्षा में हैं ।
प्रत्येक दर्शनार्थी तीनों देवों के दर्शन कर कामना पूर्ति के लिए यहां अर्जी लगायी जाती है। अर्जी और दरख्वास्त बाजार की किसी भी दुकान से खरीदा जा सकता है। सभी दुकानों में इनकी कीमत समान है।
दरख्वास्त - दरख्वास्त छोटी-मोटी परेशानियों और बाधाओं को दूर करने के लिए लगाई जाती है और अर्जी -अर्जी असाधारण व्याधि और कष्टों को दूर करने के लिए लगाई जाती है। यूं समझिए कि....
यह बालाजी के मंदिर में किसी मन्नत या मनौती करने का एक वैधानिक तरीका है। बालाजी में रिवाज है कि वहां पहुंचते ही सबसे पहले एक दरखास्त इस बात की लगाई जाती है कि हम आपके दरबार में हाजिर हुए हैं।
उसके बाद अगली तमाम दरख्वास्त अनेक छोटी-मोटी परेशानियों और मन की मुराद पूरी करने के लिए लगाई जाती हैं।
लौटने से पहले एक दरख्वास्त इस बात की लगाई जाती है कि आप हमारी सभी दरख्वास्त या अर्जी स्वीकार करें और हम यहां से अपने घर बिना बाधा के सकुशल पहुंचे।
 इसका नियम से पालन करने वाले की बालाजी तत्काल सुनते हैं। नियम इस तरह है
सबसे पहले - यह कागज पर कलम से लिखी दरख्वास्त नहीं, सबसे पहले हलवाई (दुकान) से दोने में प्रसाद लेते हैं लेते हैं। अपितु यह एक दौने में छह बूंदी के लड्डू, कुछ बताशे तथा घी का एक दीपक होता है।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर, मेहंदीपुर, राजस्थान (Mehandipur Balaji Temple, Mehandipur, Rajasthan)
बालाजी के दरबार में इस दौने को लेकर बालाजी के मंदिर में जाते हैं। वहां पुजारी को यह दौना दे देते हैं। पुजारी दौने में से कुछ बताशे, लड्डू जल रहे अग्निकुंड में डाल देता है। जिस समय वह प्रसाद कुंड में डाल रहा हो, आपको अपनी मनोकामना मन में ही कहनी होती है। जैसे कि बालाजी भगवान मैं आपके दरबार में हूं, मेरी रक्षा करते रहना आदि।
- तब पुजारी उस दौने में से दो लड्डू निकाल कर अपने पास रख लेते हैं, शेष रहा प्रसाद आपको वापस कर देता है।
भैंरो बाबा के दरबार में -और शेष दौने को भैंरो बाबा के मंदिर में पुजारी को दे देते हैं। वह भी उस दौने में से कुछ प्रसाद लेकर हवन कुंड में प्रवाहित कर देता है।
-ठीक उसी समय आपको वहीं मनोकामना के शब्द दोहराने हैं, जो आपने बालाजी के सामने मन ही मन कहे थे।
कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव जी
प्रेतराज सरकार के दरबार में - अब वही दौना लेकर आगे प्रेतराज सरकार के दरबार में पुजारी को देते हैं। वह भी कुछ सामग्री लेकर हवन कुंड में डालेगा। यहां भी वही मनोकामना के शब्द आपको दोहराने हैं। पुजारी शेष दौना आपको वापस कर देता है।
प्रेतराज दरबार से बाहर आकर दौना (त्याग दें) फैंकना - प्रेतराज दरबार के पीछे यहां बाहर एक चबूतरा है, यहां जाकर अपने ऊपर से 7 बार उतार कर वह दौना (त्याग दें) फैंक देते हैं। मंदिर के पिछवाड़े के हरिजन बाड़े में जानवरों को डाल देते हैं। हरिजन बाड़े से सटी पहाड़ी पर सैकड़ों ईंटों और पत्थरों के बने घरौंदे यानी छोटे-छोटे घर बने हैं। ये उन लोगों ने बनवाए हैं जिन पर अपने ही पूर्वजों की कोई भूत-प्रेत बाधा थी। जब वे उनसे मुक्त हो गए तो उन्हें बालाजी की शरण में ही स्थान मिल गया।बताते है कि यहाँ आने पर भक्तों को भूत -प्रेत बाधाओं से मुक्ति मिलती है ,उनके सभी कष्ट दूर होते है।
प्रेतराज दरबार
भोग लगाने के बाद मिले लड्डू खाना- मंदिर से बाहर आकर वहां जो दो लड्डू बालाजी के भोग लगाने के बाद मिले थे उन्हें खा लेते हैं। इस तरह अर्जी का एक चरण पूरा हो जाता है।  
कामना की अर्जी का दूसरा तरीका ---------
सबसे पहले -अब हलवाई से थाल में अर्जी का सामान ले सकते हैं। हलवाई के थाल में सवा किलो बूंदी के लड्डू, एक कटोरी में घी थाल में रखकर देता है।
बालाजी के दरबार में फिर वापस दूसरे रास्ते से बालाजी के मंदिर में जाते हैं और थाल पुजारी को देते हैं। वह कुछ लड्डू भोग के लिए तथा घी निकाल लेता है और कुछ लड्डू हवन में डालता है। अब इसी समय आपको फिर से अपनी मनोकामना के वही शब्द मन ही मन दोहराने हैं।
-पुजारी थाली में खाली घी की कटोरी और छह लड्डू आपको वापस कर देता है। वह थाल आप सीधे हलवाई को दे दें।
भैंरो बाबा के दरबार में -हलवाई आपको एक थाल में उबले चावल तथा दूसरे थाल में उबले हुए साबुत उरद देता है। छह लड्डुओं में से दो लड्डू उरद के थाल में रख देगा तथा दो लड्डू चावल के दाल में रखेगा। शेष दो लिफाफे में रखकर आपको दे देगा, जो आपको जेब में रख लेने हैं। दोनों थालों को बाहर के रास्ते से भैंरो जी के मंदिर में पुजारी के सामने रख देने है। पुजारी उसमें से कुछ सामग्री हवन कुंड में डालेगा। ठीक उसी समय आपको अपनी मनोकामना के वही शब्द मन ही मन कहने हैं।
प्रेतराज सरकार के दरबार में - अब दोनों थाल लेकर प्रेतराज सरकार के मंदिर में जाएंगे। यहां भी पुजारी कुछ सामग्री लेकर हवन कुंड में डालेगा। ठीक उसी समय आपको वही मनोकामना यहां भी कहनी है, जो पहले बालाजी और भैंरो जी के सामने कही थी।
प्रेतराज दरबार से बाहर आकर - अब प्रेतराज दरबार से बाहर आकर मंदिर से बाहर चबूतरे पर आकर पीछे मुड़कर पूरी सामग्री वहां डाल देते हैं।
भोग लगाने के बाद मिले लड्डू खाना- वापस आकर थाल हलवाई को दे देते हैं। और हाथ धोकर जेब में रखे दो लड्डू अर्जी लगाने वाले को खाने होते हैं। किसी और को नहीं देते।   
इसके बाद एक दरख्वास्त लेकर फिर कि बालाजी महाराज मैंने जो अर्जी लगायी थी - इसके बाद एक दरख्वास्त लेकर फिर बालाजी के मंदिर में जाते हैं और पुजारी को देते हैं। पुजारी के उसे हवन कुंड में डालते समय मन ही मन प्रार्थना करते हैं कि बालाजी महाराज मैंने जो अर्जी लगायी थी, ( मनोकामना के वही शब्द बोलते हैं) उसे पूरी करना। दो लड्डू दौने से निकाल कर जेब में रख लेते हैं, फिर उसी क्रम में भैंरो बाबा और प्रेतराज सरकार से मांगते हैं और अंत में दौना फैंक कर नीचे आकर हनुमान जी के भोग से निकाले दोनों लड्डू खा लेते हैं।
मंदिर छोड़ने तथा घर वापस चलते समय की एक दरख्वास्त
मंदिर छोड़ने तथा घर वापस चलते समय की एक दरख्वास्त फिर लगाते हैं, जिसमें तीनों देवों से पहले बताए क्रम के अनुसार पारिवारिक सुख शांति तथा उनकी कृपा मांगते हैं। यहां बालाजी का भोग लगाने पर पहले जो दो लड्डू निकाले थे, वे नहीं निकालते हैं और रुकते नहीं हैं, सीधे घर को प्रस्थान कर देते हैं।
भूत-प्रेत की अर्जी -------------------
भूत-प्रेत ग्रस्त लोग यहां उपरोक्तानुसार अर्जी लगाते हैं। यहां भूत प्रेतों को संकट कहते हैं-अर्जी में बालाजी, भैंरो जी व प्रेतराज जी से यही कहते हैं कि मेरे ऊपर जो संकट है, उससे मुझे मुक्त करें। प्रार्थना करते ही यहां की अदृश्य शक्तियां क्रियाशील हो जाती हैं और संकट को उस पीडि़त व्यक्ति पर लाकर कई तरीकों से कसती हैं। वह संकट को तीन प्रकार की गति देती हैं। एक तो संकट को फांसी दी जाती है। वह संकट भैरों जी के यहां पीडि़त के शरीर में शीर्षासन की स्थिति बनाकर पीडि़त को मुक्त करने का वचन देता है। और यह भी बताता है कि उसे किस तांत्रिक ने लगाया है। अथवा वह स्वयं ही उसके पीछे कब और कहां से लगा है। और उस संकट ने पीडि़त का क्या-क्या अहित किया है। अंत में उस संकट को फांसी दे दी जाती है। या उस संकट को भंगीपाड़े में जला भी दिया जाता है।
यदि बालाजी समझते हैं कि संकट अच्छी आत्मा है तो उसे शुद्ध कर अपने चरणों में जगह भी देते हैं। बाद में वही संकट शक्ति अर्जित कर अन्य पीडि़तों का कल्याण करता है। जिससे संकट हरा जाता है, बालाजी उसकी रक्षा के लिए अपने दूत दे देते हैं जो उसकी रक्षा करते रहते हैं। यह सारा काम यहां स्वचालित अदृश्य शक्तियों द्वारा होता है, जिसमें किसी जीवित व्यक्ति या पुजारी का कोई योगदान नहीं होता।
संकट बालाजी महाराज के यहां कैद हो जाता है
यदि संकट ग्रस्त पीडि़त यह अर्जी लगाता है कि बालाजी महाराज जो संकट उसे परेशान कर रहा है, उसे वह कैद कर लें तो वह संकट बालाजी महाराज के यहां कैद हो जाता है। और वह उन संकटों से मुक्त हो जाता है। यहां संकटग्रस्तों को विभिन्न यातनाएं जैसे कलामुंडी खाते, दौड़-दौड़ कर दीवार में पीठ मारते, धरती पर हाथ मारते, भारी-भारी पत्थर अपने ऊपर रखवाते, अग्नि में तपते आदि देखकर दर्शनार्थी भयभीत हो जाता है। किंतु यहां भयभीत होने की कोई बात नहीं है। संकटग्रस्त व्यक्ति किसी दर्शनार्थी को कोई हानि नहीं पहुंचाते। बालाजी महाराज के अदृश्य गण दर्शनार्थियों की रक्षा को तत्पर रहते हैं।
सवा मनी का विधान
सवा मनी का विधान जो दर्शनार्थी अपने किसी कार्य के लिए अर्जी लगाता है, वह यह भी कहता है कि बालाजी महाराज मेरा काम होने पर आपकी सवा मनी करूंगा, तो कार्य पूरा होने पर सवा मनी की जाती है। सवा मनी के लिए श्रीराम जानकी मंदिर के पुजारी को सवा मनी के पैसे जमा कराने होते हैं। यह दो प्रकार की होती है। एक लड्डू-पूरी और दूसरी हलुआ-पूरी। पुजारी उस राशि की रसीद दे देता है।
दोपहर बारह बजे मंदिर में प्रसाद लगने के बाद आपको प्रसाद दे दिया जाता है। यह प्रसाद अपने परिजनों व साथियों के लिए मंदिर से धर्मशाला में ले जाकर सेवन करना चाहिए। इस मंदिर में यह विशेष बात है कि मंदिर में लगाया भोग प्रसाद न कोई लेता है और न किसी को दिया जाता है। और न कोई खाता है। यह प्रसाद अपने घर भी नहीं ले जाया जाता। केवल मिश्री-मेवा का प्रसाद ही घर ले जा सकते हैं।
व्यवस्थाएं-
यहां करीब तीन सौ धर्मशालाएं हैं। भोजन की अच्छी व्यवस्था है। किसी को रहने व भोजन की असुविधा नहीं होती। विडंबना यह है कि दूर से आने वालों को गाइड करने वाला कोई नहीं है। दुकानदारों से पूछकर ही सब काम करने पड़ते हैं। इसमें दुकानदारों का व्यापारिक दृष्टिकोण भी रहता है। यह लेख दर्शनार्थियों के मार्गदर्शन में उपयोगी सिद्ध हुआ तो ही मेरा लेखन सार्थक हो सकेगा।
कई वर्शों पूर्व हनुमानजी और प्रेत राजा अरावली पर्वत पर प्रकट हुए थे। घातक आत्माओं और काले जादू से पीड़ित रोगो से छुटकारा पाने लोग यहाँ आते हैं। इस मन्दिर को इन पीडाओं से मुक्ति का एकमात्र मार्ग माना जाता है। मन्दिर के पन्डित इन रोगों से मुक्ति के लिए कई उपचार बताते हैं जैसे कि श्लोक पढना, शाकाहारी भोजन करना, अपने शरीर को पीडित करना इत्यादि। कई गंभीर रोगियों को लोहे की सांकल से बाँधकर मन्दिर में कई दिन रखा जाता है, ताकि वह स्वस्थ हो जाए। यह सुनने में आश्चर्यजनक लगता है पर हकीकत में कई लोग इसी तरह के उपचार से स्वस्थ होते देखे गये हैं। बालाजी का मन्दिर, प्रेत राजा का मन्दिर्, भैरव जी का मन्दिर और राम दरबार यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं।
आस्था का केन्द्र बालाजी-
मेहंदीपुर बालाजी की प्रसिद्धि विशेष? रूप से भूत-प्रेतों के प्रकोप से मुक्ति दिलाने की मान्यता के कारण हुई है। मान्यता है कि भूत-प्रेत, पागलपन, लकवा, बांझपन और इसी प्रकार की दूसरी बीमारियों के रोगी यहां मन्नत मांगने से ठीक हो जाते हैं। यह तीर्थस्थल भूतों को फांसी देने के लिए भी विख्यात है। भूत भी यहां दूत बन जाते हैं। मूर्ति के चरणों में एक कुंड है जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। यह रहस्यमयी जल बाबा जी की मूर्ति की बाईं छाती के नीचे एक बारीक जलधारा के रूप में निरन्तर बहता रहता है। इसी जल से भक्तों की आरती उपरांत छींटे लगते हैं।?अधिक चोला चढ़ जाने पर भी जलधारा कभी बंद नहीं होती है।
कैसे पहुंचें बालाजी मेहंदीपुर
मंदिर आगरा/जयपुर राष्टीय राजमार्ग पर भरतपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूरी पर और जयपुर से 100 किलोमीटर पहले बायें हांथ पर लगभग तीन किलोमीटर अंदर प्रतिष्ठित है। बांदीकुई रेलवे स्टेशन से यह स्थान लगभग 40 किमी. है। तथा सड़क द्वारा यह जयपुर या भरतपुर या अलवर की तरफ से आराम से जाया जा सकता है। यह मंदिर जयपुर-बांदीकुई बस मार्ग पर जयपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर है।
राजस्थान के दौसा जिले में मेहंदीपुर बालाजी का चमत्कारिक मंदिर है। बाल रूप हनुमान का स्वरूप ही बालाजी के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर जयपुर-आगरा मार्ग पर जयपुर से सौ किमी और आगरा से 135 किमी और दिल्ली से वाया 275 किमी की दूरी पर स्थित है।
रेलमार्ग से अमृतसर से जयपुर के मार्ग में बांदीकुई रेलवे स्टेशन से बस या जीप द्वारा तीर्थस्थल पर पहुंचा जा सकता है। बस या सड़क मार्ग से मथुरा से भरतपुर होते हुए बालाजी मेहंदीपुर पहुंचा जाता है। हवाई मार्ग से जयपुर पहुंच कर टैक्सी द्वारा मेहंदीपुर बालाजी पहुंचा जा सकता है। हिंडोन से सवा घण्टे का समय बालाजी तक बस द्वारा लगता है।
-प्रस्तुति Pep Singh


सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।


No comments:

Post a Comment