अर्जुन के रथ की पताका में हनुमान क्यों ?
भारत
में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो।
कह्यो
द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो।।
बानर
सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूँतें घाटि नभतल भो।
नाई-नाई
माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो।। ५
भावार्थ –
महाभारत में अर्जुन के रथ की पताका पर कपिराज हनुमान् जी ने गर्जन
किया, जिसको सुनकर दुर्योधन की सेना में घबराहट उत्पन्न हो
गयी। द्रोणाचार्य और भीष्म-पितामह ने कहा कि ये महाबली पवनकुमार है। जिनका बल
वीर-रस-रुपी समुद्र का जल हुआ है। इनके स्वाभाविक ही बालकों के खेल के समान धरती
से सूर्य तक के कुदान ने आकाश-मण्डल को एक पग से भी कम कर दिया था। सब योद्धागण
मस्तक नवा-नवाकर और हाथ जोड़-जोड़कर देखते हैं। इस प्रकार हनुमान् जी का दर्शन
पाने से उन्हें संसार में जीने का फल मिल गया।। ५।।
अर्जुन
के रथ पर
फहराने वाले पताका पर हनुमान को दर्शाया जाता है। किसी
ने पूछा ऐसा क्यों जबकि रथ संचालक (सारथी) तो श्री
कृष्ण थे। उनके बदले
श्री राम होते तो बात समझ में आती। दूसरे एक दोस्त ने कहा क्यों जबरन माथाफोड़ी कर रहे हो, राम हो या कृष्ण एक ही के तो चट्टे बट्टे है, अल्टीमेटली
दोनों एक ही तो हैं, फिर बात
वहीँ ख़तम भी हो गयी।
आज
माताजी से कुछ ज्ञान प्राप्ति हुई सो बाँट रहा हूँ। युधिस्ठिर के कहने पर अर्जुन इंद्र से दिव्यास्त्र
प्राप्त करने हिमालय की ओर
निकल पड़ा अर्जुन के गए लम्बा समय हो
चला था पांडवों का बाकी दल भी उसी तरफ बढ चला रास्ते में
सुबाहु की राजधानी कुलिंद में रुकना हुआ। सुबाहु के आतिथ्य में कुछ समय बिताकर पुनः
यात्रा जारी रही नारायणाश्रम का मनमोहक वन
उन्हें भा गया और वहीँ डेरा डाल दिया गया।
एक
दिन की बात है उत्तर पूर्वी दिशा से हवा का एक झोंका आया और द्रौपदी के पास एक फूल
आ गिरा द्रौपदी फूल की सुन्दरता और मादक महक से मदमस्त हो उठी, हर्षातिरेक में भीम को संबोधित कर कहा,
“देखिये तो कितना सुन्दर है और कितनी प्यारी खुशबू है। मैं तो इसे युधिष्ठिर जी को दूँगी ऐसे ही और फूल
ले आईये ना, हमलोग इसका एक पौधा अपने कम्यका वन में लगायेंगे” इतना
कह कर वह फूल देने युधिष्ठिर के पास दौड़ पडी। द्रौपदी
को प्रसन्न करने की चाहत से भीम फूल की मीठी मीठी खुशबू को हवा में सूंघते हुए
अकेला ही आगे बढ़ता चला गया कुछ दूर जाने पर एक पहाड
की तलहटी में केले का बागीचा था वहां धधकती आग जैसी चमक लिए एक बडे बन्दर को
रास्ता रोके बैठा पाया भीम ने बन्दर को डराने के लिए
आवाजे निकालीं ताकि वह भाग जाए परन्तु वह बन्दर अलसाई सी थोडी आँखें खोल बोला “मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए यहाँ लेटा हूँ , तुमने मुझे जगाया क्यों, तुम तो एक बुद्धिमान
मानव हो जबकि मैं मात्र एक पशु, एक तर्क संगत इंसान से
अपेक्षित है कि वह छोटे प्राणियों के रूप में जानवरों
के प्रति सहिष्णु हो, सही और गलत के बीच के अंतर
के बारे में तुम्हें शायद ज्ञान नहीं है, तुम कौन हो
और कहाँ जाना चाहते हो, इस रास्ते पर और अधिक नहीं जाया जा
सकता। यह देवताओं के लिए है, मनुष्य
इस सीमा को पार नहीं कर सकता यहाँ के फलों का इच्छानुसार
सेवन करों और यदि बुद्धिमान हो तो शांतिपूर्वक वापस चले जाओ” ।
भीम
को इतने हलके से किसी ने नहीं लिया था, वह नाराज हो गया और चिल्लाया
“एक वानर और तेरी ये जुर्रत,
इतनी बडी बडी बातें कर रहा है, मैं एक क्षत्रिय योद्धा हूँ,
कुरु वंशज और कुन्ती का पुत्र मैं वायु
देवता का पुत्र भी हूँ, अब रास्ते से हट जाओ,
मेरे लिए रुकावट बनना तुम्हारे लिए जोखिम भरा होगा, तिसपर मुस्कुराते हुए बन्दर ने कहा “ठीक है मैं एक वानर ही हूँ परन्तु यदि तुम जबरन आगे बढ़ते हो तो तुम्हारा
नाश निश्चित है” ।
“
मुझे तुम्हारे सलाह की जरूरत नहीं है। मेरे विनाश से
तुम्हें कोई लेना देना नहीं है, अब उठो और मेरे रास्ते से हट जाओ नहीं तो मैं
ही तुम्हें हटा दूंगा” बन्दर
ने जवाब दिया, “बूढा होने के कारण मुझमें उठने का भी दम नहीं
है यदि जाना ही हो तो मेरे ऊपर से कूद जाओ”
“यह तो बडा आसान होता परन्तु शास्त्र इस बात की अनुमति नहीं देते, नहीं तो एक ही बार में तुम्हारे ऊपर से होते हुआ, जैसे
हनुमान ने समुद्र को पार किया था, उस पहाड को भी लांघ
जाता” भीम ने कहा । बन्दर ने आश्चर्य
प्रकट करते हुए पूछा,“हे श्रेष्ठ मानव, यह हनुमान कौन था जिसने समुद्र पार
किया था, यदि कहानी मालूम हो तो बताओगे ?”
भीम
ने गरजते हुए कहा
“श्री राम की पत्नी सीता को ढूँढने के लिए सौ योजन चौड़े समुद्र को लांघने वाले मेरे बडे भैय्या हनुमान का नाम नहीं
सुना है ? शक्ति और साहस में मैं भी उनके बराबर
का हूँ . बस करो काफ़ी बात हो गयी. अब उठो और रास्ता छोडो मुझे और न भड़काओ कहीं
मैं तुम्हारा अहित न कर बैठूं “,
भीम
द्वारा बन्दर की पूँछ को सरकाना – १००० वर्ष पूर्व का शिल्पांकन
“
हे पराक्रमी धीरज रखें। आप
शक्तिशाली हैं, नम्रता बरतें, बूढ़े
और कमजोर पर दया करें, बुढापे के कारण मैं खडा भी नहीं हो पा रहा हूँ, क्योंकि तुम्हें मेरे
ऊपर से कूद कर लांघने में संकोच है इसलिए मेरी पूँछ को किनारे हटाकर अपना रास्ता
बना लो” बंदर की इन बातों को सुनकर और अपनी अपार शक्ति के दंभ में भीम ने बन्दर की पूँछ
पकड़ कर रास्ते से हटाने की सोची। पूरी ताकत लगाने पर भी पूँछ हिली तक नहीं, अपने
जबड़ों को भीचते हुए इतना दम लगाया कि हड्डियाँ
कड्कडाने लगीं, पसीने से तर
बतर हो गया लेकिन पूँछ को टस
से मस नहीं कर पाया, शर्मिन्दगी से भीम
का सर झुक गया और दीन भाव से क्षमा याचना करते हुए
पूछा आप कौन हैं क्या कोई सिद्धपुरुष हैं, गन्धर्व अथवा देवपुरुष तो नहीं. उस बन्दर को
अपने से अधिक शक्तिशाली पाकर भीम के मन में श्रद्धा उमड पडी और वह समर्पण भाव से
व्यवहार करने लगा था। भीम की दशा को भांप कर बन्दर रुपी बजरंगबली ने कहा “हे शक्तिमान पांडव मैं
तुम्हारा भाई वायुपुत्र हनुमान ही हूँ जिसका गुणगान तुमने कुछ देर पहले किया था। इस रास्ते से आगे
बुरी आत्माओं
का डेरा है, यक्षों और राक्षसों का भी
वास है, उधर तुम्हारे लिए खतरा हो सकता था इसलिए ही तुम्हें
रोका, यहीं झरने के नीचे
तुम्हे “सौगंधिका” के पौधे मिल जायेंगे
जिसकी तुम्हें तलाश है,
भीम
के खुशी का ठिकाना न रहा और भाव विव्हल हो बोल पड़ा “मैं
महाभाग्यशाली हूँ कि मुझे मेरे भ्राता
से मिलन का अवसर मिला। मेरी कामना है कि आपके उस विश्व रूप को देख सकूँ जब
आपने समुद्र को लांघा था”
इतना कह भीम साष्टांग दंडवत हो गया, हनुमान जी मुस्कुराए और धीरे धीरे अपने शरीर को विकसित करने लगे, थोडी ही देर में भीम के सामने पहाड
जैसे एक विशालकाय हनुमान जी थे, भीम इस बड़े भाई के उस
दिव्य स्वरुप को देखकर रोमांचित हुआ। हनुमान की उस अद्भुत काया से उत्पन्न हो रहे प्रकाश की चका चौंध
ने भीम को अपनी आँखें बंद कर लेने के लिए विविश कर
दिया।
हनुमान
भीम से यह कहते हुए कि दुश्मनों से सामना होने पर उनका आकार और भी बड़ा हो सकता है, अपने
मूल रूप में आ गए और स्नेह से भीम को अपने गले से लगा लिया. इस आलिंगन से भीम के शरीर में एक नयी ऊर्जा का
संचार हुआ और अपने आपको पहले से ज्यादा शक्तिशाली महसूस किया। हनुमान
ने भीम से कहा “हे नायक, अब अपने डेरे
के लिए लौट पडो और जब भी जरूरत हो तो मुझे याद भर कर लेना और तुम मुझे अपने पास पाओगे”
भीम ने कहा: ” मैं धन्य
हुआ जो आप से मुलाक़ात हो गई, हम पांडव भाग्यशाली हैं, आपकी शक्ति से
प्रेरित होकर हम अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में समर्थ रहेंगे “।
“युद्ध के मैदान में एक शेर की तरह तुम्हारी दहाड़
के साथ मेरी आवाज भी मिलकर दुश्मनों के दिलों में आतंक फैला देगा। मैं
तुम्हारे भाई अर्जुन के रथ की ध्वजा पर उपस्थित रहूँगा,
पांडव विजयी होंगे” यह कहते हुए हनुमान
ने भीम को उसके वहां आने के प्रयोजन की याद दिलायी और उस झरने की तरफ इशारा किया
जहाँ सौगंधिका का पुष्प प्राप्त होता है। तत्काल भीम के
दिमाग में द्रौपदी घूमने लगी, उसने विदा ली और सौगंधिका के पौधे को फूलों सहित उखाड कर ले चला।
रोचक और अजीब संग्रह आपके लिए.....
·
हनुमान जी के गुरु सूर्य देव (शिक्षा ग्रहण करने के लिए
हनुमान जी को माता अंजनादेवी ने किसके पास भेजा)
सभी धर्म
प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।
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