बजरंगबली का त्रेतायुग का
जाखू, मंदिर शिमला, जाखू पहाड़ी पर, (हिमाचल प्रदेश)
जाखू मंदिर, जाखू पहाड़ी पर समुद्र तल से 8048 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, यह बर्फीली चोटियों,
घाटियों और शिमला शहर का सुंदर और मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।
भगवान हनुमान को समर्पित यह धार्मिक केंद्र रिज के निकट स्थित है। शिमला शहर से
मात्र 2 कि.मी. की दूरी पर घने पहाड़ी तथा देवदार के वृक्षों से घिरी पर्वतमाला
जिसे जाखू पहाड़ी कहते हैं।
जाखू मंदिर शिमला की सबसे ऊंची चोटी
पर स्थित है। शिमला के सबसे लोकप्रिय स्पॉट मॉल से जाखू मंदिर के लिए रास्ता जाता
है। आप जाखू पैदल भी जा सकते हैं।अगर आप सेहतमंद हैं तो जाखू की चढ़ाई आधे घंटे की
है। थोड़े कमजोर हैं तो 45 मिनट। आराम आराम से जाना चाहते हैं तो एक घंटे। लेकिन
पैदल नहीं जाना चाहते तो टैक्सी बुक करें।
दिल्ली
के नंदा ट्रस्ट द्वारा बनाई गई इस मूर्ति की कुल
ऊंचाई 108 फीट है और मौसम साफ होने
पर यह 25 किलोमीटर की दूरी से दिखना आरंभ हो जाएगी। विश्व में समुद्रतल से लगभग 8,500
फीट की ऊंचाई पर स्थापित यह मूर्ति अपने आप में एक इतिहास है। इसके
अलावा देश में यह दूसरी सबसे ऊंची मूर्ति होगी। इससे पहले केवल आंध्र प्रदेश में
ही 135 फीट की ऊंचाई वाली मूर्ति स्थापित है। अपने आप में
अनूठी किस्म की इस मूर्ति के निर्माण पर लगभग 1.5 करोड़
रुपये की लागत आई।
शिमला में 108 फुट हनुमानजी की विशालकाय मूर्ति |
हिमाचल के शिमला में हनुमानजी की
विशालकाय मूर्ति है जिसकी ऊंचाई 33 मीटर
है। इसे एशिया की सबसे ऊंची मूर्ति माना जाता है जिसकी ऊंचाई 108 फुट है। शिमला के जाखू मंदिर में इस मूर्ति की स्थापना की गई। यह मूर्ति 2,296
फुट की ऊंचाई पर स्थित है। साढ़े 8
हजार फुट की ऊंचाई मूर्ति की स्थापना नवंबर 2010 में एचसी नंदा न्यास की तरफ से की गई है। मूर्ति के लोकार्पण के समय
अभिषेक बच्चन और उनकी बहन श्वेता बच्चन नंदा भी शामिल हुए थे।
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला की “जाखू पहाड़ी” पर मौजूद है, त्रेतायुग का जाखू मंदिर जहां यह विशालकाय बजरंगबली जी की मूर्ति स्थापित
है। यहां स्थापित पवनपुत्र की प्रतिमा 108 फीट ऊंची है । जिसका
रंग सिंदूरी है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना त्रेतायुग में याकू ऋर्षि ने
की थी, और उन्हीं के नाम पर इस मंदिर का नाम जाखू मंदिर रखा
गया। जाखू
मंदिर में 1837 की खींची गई मंदिर की एक श्वेत श्याम फोटो लगी है। जाखू मंदिर में
अब हनुमान जी की विशाल प्रतिमा भी लगी है। ये प्रतिमा 2010 में लगाई गई है।
जाखू मंदिर जब आप जाएं तो यहां बंदरों
( हनुमान जी माफ करें ) से सावधान रहें। मंदिर के गेट पर इनसे बचने के लिए छड़ी भी
मिलती है। लेकिन आप बंदरों से कोई छेड़छाड़ नहीं करें। ये बंदर कई बार आपकी तलाशी
भी लेते हैं बिल्कुल पुलिस वाले की तरह। अगर कोई आपके पास खाने पीने की चीज है तो
तुरंत इनके हवाले कर दें वर्ना खैर नहीं। बताया जाता है कि जाखू मंदिर परिसर में
सदियों से बंदरों की टोलियां रहती हैं। ये हालांकि श्रद्धालुओं का कुछ बुरा नहीं
करते लेकिन उनकी अपेक्षा रहती है कि आप उनके लिए कुछ दाना पानी जरूर लेकर आएं।
पौराणिक कथा के अनुसार जब राम-रावण
युद्ध में लक्ष्मण घायल हो गए थे। तब उन्हें बचाने के लिए वैध ने संजीवनी बूटी
लाने के लिए कहा। ऐसे में श्रीराम ने बूटी लाने की जिम्मेदारी पवनपुत्र
हनुमान जी को सौंपी।
हनुमानजी हिमालय की और उड़े तो रास्ते
में उन्होंने याकू ऋर्षि से संजीवनी बूटी के बारे में विस्तृत जानकारी ली और
उन्होंने वचन दिया कि बूटी लेने के बाद वह उनके
(ऋर्षि) के आश्रम में जरूर आएंगे।
हनुमानजी जब हिमालय की ओर जा रहे थे।
उसी समय रास्ते में एक राक्षस ने उन्हें जाने से रोका। उस राक्षस से बजरंगबली का
युद्ध काफी देर तक चला। जिसके कारण उन्हें देर हो गई और वह ऋर्षि के आश्रम में
नहीं जा सके। पर हनुमान याकू ऋर्षि को नाराज नहीं करना चाहते थे। तभी वह अचानक
प्रकट होकर और अपना विग्रह (मूर्ति) बनाकर गायब हो गए।
कहते हैं कि जिसम समय हनुमानजी पहाड़ी
पर उतरे उस समय पहाड़ी उनका भार सहन नहीं कर सकी। और पहाड़ी जमीन में धंस गई। इस
तरह मूल पहाड़ी आधी से ज्यादा धरती में समा गई।
जहां हनुमानजी ने चरण रखे थे। वहां
संगमरमर के पत्थर से चरण बनाकर रखे गए हैं। जो आज भी यहां मौजूद है। जिनकी पूजा
करना भक्त बहुत सौभाग्यशाली समझते हैं।
यहां त्रेतायुग में याकू ऋर्षि ने
प्रतिमा का स्थापना कराई। जो यहां आने वाले हर भक्त को अपनी ओर आकर्षित करती है।
मंगलवार और शनिवार को होने वाली आरती
में यहां काफी लोग आते हैं और जिस भक्त की मुराद पूरी होती है। वह रविवार को अपनी
श्रद्धा से भंडारा करवाता हैं।
जहां हनुमानजी ने चरण रखे थे |
कहते हैं जाखू मंदिर त्रेतायुग का है।
मंदिर के अंदर ही हनुमानजी की मूल प्रतिमा मंदिर के स्थापित है। मंदिर के बाहर बनी
मूर्ति का निर्माण 2010 में किया गया था।
करीब 2 करोड़ की लागत से बनी यह प्रतिमा शहर में दूर से ही
देखी जा सकती है। मंदिर के बाहर बनी मूर्ति का निर्माण 2010 में
किया गया था। करीब 2 करोड़ की लागत से बनी यह प्रतिमा शहर
में दूर से ही देखी जा सकती है।
रोचक और अजीब संग्रह आपके
लिए.....
सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर
प्रणाम।
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