Sunday 8 February 2015

संकट मोचन हनुमानजी ने इसलिए धारण किया था 'पंचमुखी' का रूप



संकट मोचन हनुमानजी ने इसलिए धारण किया था 'पंचमुखी' का रूप 
जब हनुमान जी ने धरा पंचमुखी रूप
जब भगवान श्रीराम और रावण का युद्ध चल रहा था तभी एक ऐसा समय आया जब रावण को अपनी सहायता के लिए अपने भाई अहिरावण का स्मरण करना पड़ा। कहा जाता है कि रावण तंत्र-मंत्र का प्रकांड पंडित एवं मां भवानी का भक्त था।
अपने भाई रावण के संकट को दूर करने का उसने एक उपाय निकाला। उसने कहा- 'यदि श्रीराम एवं लक्ष्मण का अपहरण कर लिया जाए तो युद्ध स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। तब अहिरावण ने ऐसी माया रची कि सारी सेना गहरी निद्रा में सो गई और वह श्री राम और लक्ष्मण का अपहरण करके उन्हें निद्रावस्था में ही पाताल लोक ले गया।
जागने पर जब इस संकट का पता चला तो रावण के अनुज विभीषण ने यह रहस्य खोला कि ऐसा दुःसाहस केवल अहिरावण ही कर सकता है। इस विपदा के समय में सभी ने संकट मोचन हनुमानजी का स्मरण किया। हनुमान जी तुरंत पाताल लोक पहुंचे और द्वार पर रक्षक के रूप में तैनात मकरध्वज से युद्ध कर उसे हरा दिया।
जब हनुमानजी पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्रीराम और लक्ष्मण जी को बंधक अवस्था में थे। अपने प्रभु का यह हाल देख कर बहुत दुःखी हुए।
तभी उन्होंने देखा कि वहां चार दिशाओं में पांच दीपक जल रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्रीराम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी थी। अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच दीपकों को एक साथ एक ही समय में बुझाना होगा।

इस रहस्य पता चलते ही हनुमान जी ने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया।
1-उत्तर दिशा में वराह मुख,
2-दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख,
 3-पश्चिम में गरुड़ मुख,
4-पूर्व दिशा में हनुमान मुख
5-आकाश की ओर हयग्रीव मुख ।
इन पांच मुखों को धारण कर उन्होंने एक साथ सारे दीपकों को बुझाकर अहिरावण का अंत किया। इस तरह हनुमानजी ने भगवान श्रीराम और उनके अनुज लक्ष्मण को अहिरावण के यहां मुक्त किया।
पवनपुत्र हनुमान, मां भगवती और शिवशंकर भोलेनाथ की विशेष रूप से आराधना की जाती है। शंकर के अवतार हनुमान  जी ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। आराधना से बल, कीर्ति, आरोग्य और निर्भीकता बढती है।
इनका विराट स्वरूप पांच मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है। इनके पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊ‌र्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित माने गएं हैं।
पूर्व की ओर का मुख वानर का हैं। जिसकी प्रभा करोडों सूर्यो के तेज समान हैं। इनका पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है।
पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड का हैं। जो भक्तिप्रद, संकट निवारक माने जाते हैं। गरुड की तरह इनको भी अजर-अमर माना जाता हैं।
उत्तर की ओर मुख शूकर का है। इनकी आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति, ऐश्वर्य, यश, दिर्धायु प्रदान करने वाल व उत्तम स्वास्थ्य देने में समर्थ हैं।
दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान नृसिंह का है। जो भक्तों के भय, चिंता, परेशानी को दूर करता हैं।
श्री हनुमान का ऊ‌र्ध्वमुख घोडे के समान हैं। इनका यह स्वरुप ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर प्रकट हुआ था। मान्यता है कि हयग्रीवदैत्य का संहार करने के लिए वे अवतरित हुए। ऐसे पंचमुखी हनुमान रुद्र कहलाने वाले बडे कृपालु और दयालु हैं।
पंचमुखी हनुमान के बारे में पौराणिक कथा।
एक बार पांच मुंह वाला एक भयानक राक्षस प्रकट हुआ। उसने तपस्या करके ब्रह्माजी से वरदान पाया कि मेरे रूप जैसा ही कोई व्यक्ति मुझे मार सके। ऐसा वरदान प्राप्त करके वह समग्र लोक में भयंकर उत्पात मचाने लगा। सभी देवताओं ने भगवान से इस कष्ट से छुटकारा मिलने की प्रार्थना की। तब प्रभु की आज्ञा पाकर हनुमानजी ने वानर, नरसिंह, गरुड, अश्व और शूकर का पंचमुख स्वरूप धारण किया। पंचमुखी हनुमान की पूजा-अर्चना से सभी देवताओं की उपासना के समान फल मिलता है। हनुमान के पांचों मुखों में तीन-तीन सुंदर आंखें आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक तीनों तापों को छुडाने वाली हैं। ये मनुष्य के विकारों को दूर करने वाले माने जाते हैं।
भक्त को शत्रुओं का नाश करने वाले हनुमान जी का हमेशा स्मरण करना चाहिए। पंचमुखी हनुमान जी की उपासना से किए गए सभी बुरे कर्म एवं चिंतन के दोषों से मुक्ति प्रदान करने वाला हैं।
पांच मुख वाले हनुमान जी की प्रतिमा धार्मिक और तंत्र शास्त्रों में चमत्कारिक मानी गई है।

रोचक और अजीब संग्रह आपके लिए.....


सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।



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