15-महावीर हनुमान मंदिर, पटना, बिहार
(Mahavir Hanuman Mandir, Patna,Bihar)
भारत में बिहार प्रान्त की राजधानी पटना
है। गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है। जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है।
यहां पर पावन गंगा नदी का स्वरुप नदी के जैसा न होकर सागर जैसा विराट दिखता है-
अनन्त और अथाह! मन को प्रसन्न कर देनेवाली एक विशाल प्रवाह ।
पटना नाम पटनदेवी (एक हिन्दू देवी) से
प्रचलित हुआ है एक अन्य मत के अनुसार यह नाम संस्कृत के पत्तन से आया है जिसका
अर्थ बन्दरगाह होता है। मौर्यकाल के यूनानी इतिहासकार मेगास्थनिज ने इस शहर को
पालिबोथरा तथा चीनीयात्री फाहियान ने पालिनफू के नाम से संबोधित किया है। यह
ऐतिहासिक नगर पिछली दो सहस्त्राब्दियों में कई नाम पा चुका है - पाटलिग्राम, पाटलिपुत्र, पुष्पपुर,
कुसुमपुर, अजीमाबाद और पटना। ऐसा समझा जाता है
कि वर्तमान नाम शेरशाह सूरी के समय से प्रचलित हुआ। पटना का प्राचीन नाम
पाटलिपुत्र था। आधुनिक पटना दुनिया के गिने-चुने उन विशेष प्रचीन नगरों में से एक
है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। अपने आप में इस शहर का ऐतिहासिक महत्व है।
ईसा पूर्व मेगास्थनीज (350 ईपू-290 ईपू) ने अपने
भारत भ्रमण के पश्चात लिखी अपनी “पुस्तक
इंडिका” में इस नगर का उल्लेख किया है। पलिबोथ्रा
(पाटलिपुत्र) जो गंगा और अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) के संगम पर बसा था। उस
पुस्तक के आकलनों के हिसाब से प्राचीन पटना (पलिबोथा) 9 मील
(14.5 कि.मी.) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि.मी.) चौड़ा था।
पटना जंक्शन के ठीक सामने महावीर
मंदिर के नाम से श्री हनुमान जी का मंदिर है। उत्तर भारत में माँ वैष्णों
देवी मंदिर के बाद यहाँ ही सबसे ज्यादा चढ़ावा आता है। इस मंदिर के अन्तर्गत महावीर
कैंसर संस्थान, महावीर वात्सल्य हॉस्पिटल,
महावीर आरोग्य हॉस्पिटल तथा अन्य बहुत से अनाथालय एवं अस्पताल चल
रहे हैं। यहाँ श्री हनुमान जी संकटमोचन रूप में विराजमान हैं।
बिहार भारत की धर्म प्राण संस्कृति का परिचय देने वाला राज्य
है। इसके कण-कण से सदैव भारत की सनातन संस्कृति का मंगलकारी स्वर गुंजायमान होता
रहा है। इतिहास साक्षी है, जब-जब भारत के धर्म,
संस्कृति और राजनीतिक अधिष्ठान पर तामसिक बादल मंडराए, बिहार के सांस्कृतिक सूर्योदय ने देश को आशा की नई राह दिखाई।
इसी राज्य की राजधानी पटना के रेलवे स्टेशन के सामने कभी एक
जीर्ण-शीर्ण मंदिर होता था, रामभक्त महावीर
हनुमान का मंदिर। कोई ढाई सौ, तीन सौ साल पुराना तो इसका
ज्ञात इतिहास है, वस्तुत: यह कितना प्राचीन है, कोई नहीं जानता।
महावीर मंदिर से पटना शहर का दृश्य |
इसे जीर्ण-शीर्ण हालत में देख पटना के कुछ प्रबुद्ध जन के मन
में वेदना उठी, वही वेदना जो कभी
जामवंत के मन में उठी थी- का चुप साधि रहा बलवाना। उस समय देश के प्रख्यात
आई.पी.एस. अधिकारी किशोर कुणाल ने इस मंदिर को पटना के समाज-जागरण का महान केन्द्र
बनाने का संकल्प किया। रा.स्व.संघ के पूर्व क्षेत्र संघचालक स्व. कृष्णवल्लभ
प्रसाद नारायण सिंह उपाख्य बबुआ जी से सम्पर्क साधा और फिर शुरू हुई एक ऐसी साधना
जिसने आज हर धर्म-साधक को आह्लादित कर रखा है।
जी हां, वही प्राचीन
जीर्ण-शीर्ण महावीर मंदिर आज विशाल बहुमंजिला भव्य मंदिर बन गया है। इस मंदिर के
विकास की गाथा के रूप में मानो नई राह को रोशन करता एक नया सवेरा पटना ने देखा है।
जहां किशोर कुणाल को भी इस मंदिर की साधना ने आचार्य किशोर
कुणाल बना दिया, वहीं इस मंदिर ने
सामाजिक समरसता का एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया। संभवत: यह ऐसा पहला मन्दिर था
जहां के मुख्य पुजारी पद पर तथाकथित पिछड़े वर्ग के एक प्रकाण्ड पंडित को बैठाया
गया।
30 अक्तूबर, 1983 को पटना
के नागरिकों के सम्मिलित प्रयास से मंदिर का नवनिर्माण प्रारंभ हुआ तब किसी ने न
सोचा था कि यह मंदिर आगे चलकर आध्यात्मिक जागरण के साथ सामाजिक विकास के महान केन्द्र
के रूप में पहचाना जाने लगेगा। 1985 में नवनिर्मित मंदिर का
भव्य उद्घाटन हुआ और शुरू हो गया परिवर्तन का नया अध्याय। मंदिर के कार्य को सुव्यवस्थित
ढंग से चलाने के लिए मार्च, 1990 में एक नए न्यास का गठन हुआ
और इसी के साथ दुनिया ने देखा कि हिन्दू समाज अपने श्रद्धा केन्द्रों का कैसा
उत्कृष्ट और प्रभावी प्रबंधन करता है। न सिर्फ मंदिर में पूजा-अर्चना, चढ़ावे आदि के बारे में नई प्रबंध प्रक्रिया प्रारंभ हुई वरन् चढ़ावे का समुचित
उपयोग किस प्रकार सामाजिक विकास के प्रकल्पों में हो, इसकी
भी प्रभावी योजना तैयार हुई।
घटना "60 के
दशक की है जब भारत की राजनीति के युवा तुर्क कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री
चंद्रशेखर अपनी किसी बीमारी के इलाज के लिए दिल्ली आए थे। दिल्ली के चिकित्सकों ने
तब उनसे कहा था कि आपका बेहतर इलाज पटना में ही हो सकता था। ऐसी ख्याति थी तब पटना
की, लेकिन इस स्थिति में धीरे-धीरे बदल होता गया। बदहाली ऐसी
फैली कि लोग अपने पुरुषार्थ और गौरव को ही भुला बैठे। आचार्य किशोर कुणाल ने
महावीर मंदिर न्यास को सर्वप्रथम इस स्थिति को बदलने के लिए सक्रिय किया। पटना के
प्रमुख चिकित्सकों के साथ मिलकर 2 जनवरी, 1988 में जो महावीर आरोग्य संस्थान का छोटा सा बिरवा किदवईपुरी मुहल्ले में
प्रारंभ हुआ था, आज वह राज्य के आधुनिकतम अस्पतालों में एक
है। महंगी चिकित्सा कैसे गरीब आदमी को भी न्यूनतम खर्च पर मिल जाए, मंदिर प्रबंधन ने इस लक्ष्य को सदैव अपने सामने रखा।
महावीर हनुमान मंदिर, पटना, बिहार |
4 दिसम्बर, 2005 को द्वारकापीठ
के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 60 बिस्तरों से युक्त
नए अस्पताल परिसर का उद्घाटन किया। मंदिर प्रशासन ने चढ़ावे की राशि का सदुपयोग
करते हुए फुलवारीशरीफ में आधुनिकतम तकनीकी सुविधाओं से युक्त कैंसर अस्पताल भी
प्रारंभ किया। हाल ही में यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर की एक गोष्ठी सम्पन्न हुई जिसका
उद्घाटन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने किया। इसी प्रकार मातृत्व-शिशु
कल्याण को ध्यान में रखकर 250 बिस्तरों से युक्त अस्पताल के
निर्माण की योजना बनी और शुरुआती चरण में 38 बिस्तरों वाले
मातृत्व-शिशु वात्सल्य अस्पताल की नींव 1 अप्रैल,
2006 को मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के करकमलों द्वारा रखी गई। मात्र 20
रुपए पंजीकरण शुल्क, 100 रुपए बिस्तर शुल्क और
4 से 5 लाख रुपए खर्च वाले आपरेशन यहां
मात्र 15 से 25000 रुपए में ही हो जाते
हैं।
नि:सन्तान दंपतियों के कष्ट निवारण में भी अस्पताल प्रबंधन
सक्रिय हो गया है। महावीर मंदिर प्रबंधन न्यास ने ये सभी कार्य चढ़ावे की राशि का
सदुपयोग करते हुए प्रारंभ किए। दीन-हीन, भूखे लोगों को प्रतिदिन भर पेट प्रसाद देने के लिए "दरिद्र नारायण भोज", सन्तों-साधुओं के लिए नि:शुल्क
निवास-प्रसाद व चिकत्सा के लिए "साधु सेवा", समाज को स्वस्थ साहित्य पढ़ने का अवसर
देने के लिए एक समृद्ध पुस्तकालय, महावीर मंदिर प्रकाशन,
ज्योतिष सलाह केन्द्र, दूरदराज के गांवों में
शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए पेयजल अभियान, संस्कृत भाषा के
नवोत्थान के लिए पाणिनी केन्द्र, अस्पृश्यता निवारण के लिए
विभिन्न त्योहारों पर विराट सर्व सहभागी उत्सव, सामाजिक मिलन
के आयोजन, भगवान के भोग के लिए नैवेद्यम और इन सभी कार्यों
में सक्रिय कार्मिकों के लिए सरकारी योजनाओं के अनुकूल सुन्दर नीति का निर्धारण और
प्रत्यक्ष संचालन आज महावीर मंदिर की ओर से किया जा रहा है।
महावीर मंदिर से पटना शहर का दृश्य |
नित नए आयाम मंदिर से जुड़ रहे हैं। पुराने मंदिरों का
जीर्णोद्धार, जल संरक्षण, पर्यावरण शुद्धि और राज्य के अनेक हिस्सों में अनेक मंदिरों को
पुनव्र्यवस्थित करने के साथ अनुसूचित जाति के प्रशिक्षित धर्मज्ञ पुजारियों की
योजना करने जैसे पवित्र अभियान को मंदिर गति दे रहा है। ऐसा ही एक प्रकल्प सदानीरा
गण्डकी के तट पर सन् 2006 में निर्मित किया गया। करीब 37
साल पहले की बात है। हाजीपुर नगर के समीप गण्डकी के तट पर भगवान
भोलेनाथ अद्भुत लिंग रूप में प्रकट हुए थे। भक्तों की भीड़ वहां जुटने लगी,
जलाभिषेक प्रारंभ हो गया, 30 वर्षों तक भगवान
आकाश की छत के नीचे रहे। महावीर न्यास ने इसे भी समाज जागृति के केन्द्र के रूप
में विकसित करने की ठानी। और 28 फरवरी, 2006 को भव्य शिव मंदिर कर निर्माण कर क्षेत्र वासियों को सौंप दिया। भगवान की
नियमित पूजा, अर्चना का दायित्व अनुसूचित जाति के श्री
चन्द्रशेखर दास ने संभाला और धीरे-धीरे समाज के लिए एक श्रेष्ठ उपासना का केन्द्र
यहां विकसित हो गया। मुजफ्फरपुर में भी न्यास ने साहू पोखर स्थित राम-जानकी मंदिर
का प्रबंधन संभाला और नियमित पूजन-अर्चन के लिए पुजारी की व्यवस्था की। भारत तो
भगवान का देश कहा जाता है। किसी मंदिर में रोज दिया न जले, यह
अपराध न होने देने का संकल्प महावीर मंदिर न्यास के कार्य से झलकता है।
पटना जंक्शन के बाहर आप निकलेंगे तो इस सामाजिक-आध्यात्मिक
जागरण के भव्य प्रतिमान को प्रणाम करना मत भूलिएगा। हनुमान जी साक्षात् अपनी शक्ति
का अहसास इस प्रतिष्ठान द्वारा सर्व समाज को करा रहे हैं।
सभी धर्म
प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।
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