16-श्री पंचमुख आंजनेयर हनुमान, कुम्बकोनम तमिलनाडू
(Panchamukhi Anjaneya Hanuman, Tamil nadu)
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श्री पंचमुख आंजनेयर स्वामी जी, कुम्बकोनम, तमिलनाडू |
कुंभकोणम (कुंपकोणम)
तमिल नाडु के तंजौर जिला का एक छोटा शहर है।
रामानुजन का जन्म मद्रास राज्य के तंजौर
जिले के कुम्बकोनम नगर में हुआ था । उनका स्वभाव शांत और स्मरणशडित विलक्षण थी ।
उन्हें 12 वर्ष की आयु में 'बाल विद्वानों घोषित कर दिया गया था । रामानुजन को गणित से बहुत प्रेम था
।
तमिलनाडू के कुम्बकोनम नामक स्थान पर
श्री पंचमुखी आंजनेयर स्वामी जी (श्री हनुमान जी) का बहुत ही मनभावन मठ है।
यहाँ पर श्री हनुमान जी की "पंचमुख रूप"
में विग्रह स्थापित है, जो अत्यंत भव्य एवं
दर्शनीय है।
अंजनीसुत महावीर श्रीराम भक्त हनुमान
ऐसे भारतीय पौराणिक चरित्र हैं जिनके व्यक्तित्व के सम्मुख युक्ति, भक्ति, साहस एवं बल
स्वयं ही बौने नजर आते हैं। संपूर्ण रामायण महाकाव्य के वह केंद्रीय पात्र हैं।
श्री राम के प्रत्येक कष्टï को दूर करने में उनकी प्रमुख
भूमिका है। इन्हीं हनुमान जी का एक रूप है पंचमुखी हनुमान। यह रूप उन्होंने कब
क्यों और किस उद्देश्य से धारण किया इसके संदर्भ में पुराणों में एक अद्भुत कथा
वर्णित है।
श्रीराम-रावण युद्ध के मध्य एक समय
ऐसा आया जब रावण को अपनी सहायता के लिए अपने भाई अहिरावण का स्मरण करना पड़ा। वह
तंत्र-मंत्र का प्रकांड पंडित एवं मां भवानी का अनन्य भक्त था। अपने भाई रावण के
संकट को दूर करने का उसने एक सहज उपाय निकाल लिया। यदि श्रीराम एवं लक्ष्मण का ही
अपहरण कर लिया जाए तो युद्ध तो स्वत: ही समाप्त हो जाएगा। उसने ऐसी माया रची कि
सारी सेना प्रगाढ़ निद्रा में निमग्न हो गयी और वह श्री राम और लक्ष्मण का अपहरण
करके उन्हें निद्रावस्था में ही पाताल-लोक ले गया।
जागने पर जब इस संकट का भान हुआ और
विभीषण ने यह रहस्य खोला कि ऐसा दु:साहस केवल अहिरावण ही कर सकता है तो सदा की
भांति सबकी आंखें संकट मोचन हनुमानजी पर ही जा टिकीं। हनुमान जी तत्काल पाताल लोक
पहुंचे। द्वार पर रक्षक के रूप में मकरध्वज से युद्ध कर और उसे हराकर जब वह
पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्रीराम एवं लक्ष्मण जी को बंधक-अवस्था में पाया।
वहां भिन्न-भिन्न दिशाओं में पांच दीपक जल रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्रीराम एवं लक्ष्मण की बलि
देने की पूरी तैयारी थी।
अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच
दीपकों को एक साथ एक ही समय में बुझाना होगा। यह रहस्य ज्ञात होते ही हनुमान जी ने
पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया।
1- उत्तर दिशा में वराह मुख,
2- दक्षिण दिशा में नरसिम्ह मुख,
3- पश्चिम में गरुड़ मुख,
4- आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं
5- पूर्व दिशा में हनुमान मुख।
इन पांच मुखों को धारण कर उन्होंने एक
साथ सारे दीपकों को बुझाकर अहिरावण का अंत किया और श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त किया।
सागर पार करते समय एक मछली ने उनके स्वेद की एक बूंद ग्रहण कर लेने से गर्भ धारण
कर मकरध्वज को जन्म दिया था अत: मकरध्वज हनुमान जी का पुत्र है, ऐसा जानकर श्रीराम ने मकरध्वज को पातालपुरी का
राज्य सौंपने का हनुमान जी को आदेश दिया। हनुमान जी ने उनकी आज्ञा का पालन किया और
वापस उन दोनों को लेकर सागर तट पर युद्धस्थल पर लौट आये। हनुमान जी के इस अद्भुत
स्वरूप के विग्रह देश में कई स्थानों पर स्थापित किए गए हैं।
इनमें रामेश्वर में स्थापित पंचमुखी
हनुमान मंदिर में इनके भव्य विग्रह के संबंध में एक भिन्न कथा है।
पुराण में ही वर्णित इस कथा के अनुसार
एक समय एक असुर, जिसका नाम “मायिल रावण” था,
भगवान विष्णु का चक्र ही चुरा ले गया। जब आंजनेय हनुमान जी को यह
ज्ञात हुआ तो उनके हृदय में सुदर्शन चक्र को वापस लाकर विष्णु जी को सौंपने की
इच्छा जाग्रत हुई। मायिल अपना रूप बदलने में माहिर था। हनुमान जी के संकल्प को
जानकर भगवान विष्णु ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया, साथ ही
इच्छानुसार वायुगमन की शक्ति के साथ
1- गरुड़-मुख,
2- नरसिम्ह-मुख
3- हयग्रीव एवं
4- वराह मुख
5- भगवान (स्वयं) हनुमान मुख
पार्वती
जी ने उन्हें कमल पुष्प एवं यम-धर्मराज ने उन्हें पाश नामक अस्त्र प्रदान किया। यह
आशीर्वाद एवं इन सबकी शक्तियों के साथ हनुमान जी मायिल पर विजय प्राप्त करने में
सफल रहे।
तभी से उनके इस पंचमुखी स्वरूप को भी
मान्यता प्राप्त हुई। ऐसा विश्वास किया जाता है कि उनके इस पंचमुखी विग्रह की
आराधना से कोई भी व्यक्ति नरसिम्ह मुख की सहायता से शत्रु पर विजय, गुरुड़ मुख की
सहायता से सभी दोषों पर विजय वराहमुख की सहायता से समस्त प्रकार की समृद्धि एवं संपत्ति
तथा हयग्रीव मुख की सहायता से ज्ञान को प्राप्त कर सकता है। हनुमान स्वयं साहस एवं
आत्मविश्वास पैदा करते हैं।
इस स्वरूप का दूसरा महत्वपूर्ण मंदिर प्रख्यात संत राघवेंद्र स्वामी के ध्यान स्थल कुंभकोरण-तमिलनाडु में है। तमिलनाडु के ही थिरुबेल्लूर नगर में पंचमुखी हनुमान जी की 12 मीटर ऊंची हरे ग्रेनाइट की प्रतिमा है।
अन्य कई स्थानों पर भी पंचमुखी स्वरूप के छोटे-बड़े मंदिर हैं।
शक्ति, आत्मविश्वास, विनम्रता, भक्ति, विश्वसनीयता एवं ज्ञान के अपार भंडार हनुमान ही
वास्तव में ऐसे पुराण-पुरुष हैं जो न केवल अपने आराधकों वरन् संपूर्ण विश्व को भय
एवं संकटों से मुक्त करते हैं और उनका संपूर्ण चरित्र एक ही संदेश देता है महावीर
बनना है तो पहले हनुमान बनना होगा। हनुमान अर्थात् वह जिसने अपने अभिमान का हनन कर
लिया है।
इस स्वरूप का दूसरा महत्वपूर्ण मंदिर प्रख्यात संत राघवेंद्र स्वामी के ध्यान स्थल कुंभकोरण-तमिलनाडु में है। तमिलनाडु के ही थिरुबेल्लूर नगर में पंचमुखी हनुमान जी की 12 मीटर ऊंची हरे ग्रेनाइट की प्रतिमा है।
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श्री पंचमुख आंजनेयर स्वामी जी, कुम्बकोनम (तमिलनाडू) |
सभी धर्म
प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।
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