श्री हनुमान की कौन-सी
विशेष मूर्तियों की उपासना से कौन-सी कामनाओं की पूर्ति और शक्तियां प्राप्त होती
है? हनुमान मूर्तिं की पूजा का क्या
होता है प्रभाव? क्या हनुमानजी इन चमत्कारी पूजा उपायों से दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल
देंगे ?
हर युग और काल में श्री हनुमान का स्मरण सुखदायी और संकट नाशक माना गया है। श्री हनुमान के प्रति ऐसी आस्था और विश्वास के साथ उनके अलग-अलग रूप पूजनीय है। श्री हनुमान की कुछ विशेष मूर्तियों की उपासना से कौन-सी कामनाओं की पूर्ति और शक्तियां प्राप्त होती है?
वीर हनुमान - वीर हनुमान की प्रतिमा की पूजा साहस, बल, पराक्रम, आत्मविश्वास देकर कार्य की बाधाओं को दूर करती है।
भक्त हनुमान - राम भक्ति में लीन भक्त हनुमान की उपासना जीवन के लक्ष्य को पाने
में आ रहीं अड़चनों को दूर करती है। साथ ही भक्ति की तरह वह मकसद पाने के लिए
जरूरी एकाग्रता, लगन देने वाली होती
है।
दास हनुमान - दास हनुमान की उपासना सेवा और समर्पण के भाव से जोड़ती है। धर्म, कार्य और रिश्तों के प्रति समर्पण और सेवा की
कामना से दास हनुमान को पूजें।
सूर्यमुखी हनुमान - शास्त्रों के मुताबिक सूर्यदेव श्री हनुमान के गुरु हैं।
सूर्य पूर्व दिशा से उदय होकर जगत को प्रकाशित करता है। सूर्य व प्रकाश क्रमश: गति
और ज्ञान के भी प्रतीक हैं। इस तरह सूर्यमुखी हनुमान की उपासना ज्ञान, विद्या, ख्याति, उन्नति और सम्मान की कामना पूरी करती है।
दक्षिणामुखी हनुमान - दक्षिण दिशा काल की दिशा मानी जाती है। वहीं श्री हनुमान
रुद्र अवतार माने जाते हैं, जो काल के नियंत्रक
है। इसलिए दक्षिणामुखी हनुमान की साधना काल, भय, संकट और चिंता का नाश करने वाली होती है।
उत्तरामुखी हनुमान - उत्तर दिशा देवताओं की मानी जाती है। यही कारण है कि शुभ और
मंगल की कामना उत्तरामुखी हनुमान की उपासना से पूरी होती है।
हनुमानजी इन 15 चमत्कारी पूजा उपायों से दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल देंगे
हनुमानजी इन 15 चमत्कारी पूजा उपायों से दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल देंगे
हनुमान
जी से आप सभी परिचित हैं ये मुझे मालूम है, पर आज जो मैं बताने जा रहा हूँ
उनसे होने वाले कल्याणकारी कृपा के बारे में जो आप नहीं जानते वही आज बता रहा हुँ।
यही कारण है की हनुमान जी के कई परम भक्तों में से कई अपने परिवार सहित उपस्थिति
दर्ज कराने में लगे रहते हैं। इसी कड़ी में यह
आलेख दे रहा हूँ जो आपको और आपके परिवार, इष्ट-मित्र सभी को कल्याणकारी
साबित होगा जय श्री राम जय श्री हनुमान।
दरअसल, भगवान
विष्णु के अवतार श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी की उपासना के लिए दिन और समय नहीं
पड़ता। जब भी समय मिले, जहाँ भी समय मिले कोई साथ दे या न दे-
शुरू हो जाएं।
शास्त्रों
के मुताबिक हनुमानजी की जन्म तिथि पूर्णिमा (चैत्र पूर्णिमा) ही बताई गई है। यही नहीं, यह तिथि
गुरु भक्ति को भी समर्पित है। हनुमानजी ज्ञान, कर्म हो या
भक्ति मार्ग हर रूप में जगतगुरु के रूप में पूजनीय हैं। हनुमानजी की पूजा के 15 अचूक व शास्त्रोक्त उपाय दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने वाले माने गए
हैं। गुरु की कृपा दृष्टि में "मेरा धर्म
दृष्टिकोण" आपके लिए अथक खोजबीन के बाद संकटमोचक व भाग्य जगाने वाले उपायों को लाये हैं।
जानिए संकटमोचक व भाग्य जगाने वाले हनुमानजी की प्रसन्नता के ये उपाय –
1. पावनता, ब्रह्मचर्य व संयम - हनुमानजी
अखण्ड ब्रह्मचारी व महायोगी भी हैं। इसलिए सबसे जरूरी है कि उनकी किसी भी तरह की
उपासना में वस्त्र से लेकर विचारों तक पावनता, ब्रह्मचर्य व
इंद्रिय संयम को अपनाएं।
2. वार, स्नान, कपड़े, आसन, मुखमण्डल - इसी
पवित्रता का ध्यान रखते हुए पूर्णिमा तिथि हो या मंगलवार-शनिवार हनुमानजी की
उपासना के लिए भक्त सवेरे तीर्थजल से स्नान कर यथासंभव स्वच्छ व लाल कपड़े पहने।
पूजा के लिए लाल आसन पर उत्तर दिशा की तरफ मुंह रख बैठे। वहीं, हनुमानजी की मूर्ति या फिर तस्वीर सामने रखे यानी उनका मुखमण्डल दक्षिण
दिशा की तरफ रखे।
3. भक्ति मार्ग, मंत्र जप लिए माला
- शास्त्रों में हनुमानजी की भक्ति तंत्र मार्ग व सात्विक मार्ग दोनों ही
तरह से बताई गई है। इसके लिए मंत्र जप भी प्रभावी माने गए हैं। भक्त जो भी तरीका
अपनाए, किंतु यह बात ध्यान रखे कि मंत्र जप के दौरान उसकी
आंखे हनुमानजी के नेत्रों पर टिकी रहें। यही नहीं, सात्विक
तरीकों से कामनापूर्ति के लिए मंत्र जप रुद्राक्ष माला से और तंत्र मार्ग से
लक्ष्य पूरा करने के लिए मूंगे की माला से मंत्र जप बड़े ही असरदार होते हैं।
4.वार,तिथि,
चोला चढ़ाने का मंत्र - पूर्णिमा तिथि या शनिवार को हनुमानजी को तिल का
तेल मिले सिंदूर से चोला चढ़ाने से सारी भय, बाधा और
मुसीबतों का अंत हो जाता है। चोला चढ़ाते वक्त इस मंत्र का स्मरण करें –
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यसुखवर्द्धनम्।
शुभदं चैव माङ्गल्यं सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।।
5. फूल चढ़ाने से वैभव व सुख - मंगलवार को
हनुमानजी को लाल या पीले फूल जैसे कमल, गुलाब, गेंदा
या सूर्यमुखी चढ़ाने से सारे वैभव व सुख प्राप्त होते हैं।
6.नारियल पर मौली या कलेवा लपेट कर चरणों में अर्पित
करें -
मनचाही मुराद पूरी करने के लिए सिंदूर लगे एक नारियल पर मौली या
कलेवा लपेटकर हनुमानजी के चरणों में अर्पित करें। नारियल को चढ़ाते समय श्री
हनुमान चालीसा की इस चौपाई का पाठ मन ही मन करें- जय जय जय हनुमान गौसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई।
7. नैवेद्य, भोग, प्रिय फल - हनुमानजी को नैवेद्य चढ़ाने के लिए भी शास्त्रों
में अलग-अलग वक्त पर विशेष नियम उजागर हैं। इनके मुताबिक सवेरे हनुमानजी को नारियल
का गोला या गुड़ या गुड़ से बने लड्डू का भोग लगाना चाहिए। इसी तरह दोपहर में
हनुमान की पूजा में घी और गुड़ या फिर गेहूं की मोटी रोटी बनाकर उसमें ये दोनों
चीजें मिलाकर बनाया चूरमा अर्पित करना चाहिए। वहीं, शाम या
रात के वक्त हनुमानजी को विशेष तौर पर फल का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। हनुमानजी को
जामफल, केले, अनार या आम के फल बहुत
प्रिय बताए गए हैं। इस तरह हनुमानजी को मीठे फल व नैवेद्य अर्पित करने वाले की
दु:ख व असफलताओं की कड़वाहट दूर होती है और वह सुख व सफलता का स्वाद चखता है।
क्या होता है? नैवेद्य ईश्वर को चढ़ाये जाने वाले
पदार्थ को कहते हैं।
नैवेद्य का अर्थ “आत्मनिवेदन है,
पुर्मरूप है आत्मसर्पण है” । लेकिन यह समर्पण यष्णुकि होता है, अज्ञानपूकि नहीं ।
नित्य पूजा का अर्पित नैवेद्य - नित्य पूजा के समय मिश्री या दूध-शक्कर का
अर्पित नैवेद्य वहां उपस्थित लोगों को दें एवं खुद भी ग्रहण करें। यह प्रसाद अकेले
भी ले सकते हैं। महानैवेद्य का प्रसाद घर के सभी लोग बांटकर ग्रहण करें। पूजा के
समय सूजी का मीठा पदार्थ, पेडे तथा मोदक आदि का प्रसाद
निमंत्रित लोगों में वितरित करें।
वैयक्तिक पूजा के अतिरिक्त नैमित्तिक वैयक्तिक पूजा का प्रसद अपने आप न
लें-
नित्य पूजा के प्रसाद के
अतिरिक्त अन्य नैमित्तिक पूजा का प्रसद अपने आप न लें। जब कोई दूसरा व्यक्ति प्रसाद दे तभी ग्रहण करें।
नैमित्तिक पूजा का प्रसाद गुरूजी को दें। गुरूजी प्रसाद ग्रहण करके हाथ धो-पोंछकर
सबको प्रसाद दें।
प्रसाद सेवन करते समय निम्नवत मंत्र पढें-
प्रसाद सेवन करते समय निम्नवत मंत्र पढें-
बहुजन्मार्जित
यन्मे देहेùस्ति दुरितंहितत्।
प्रसाद भक्षणात्सर्वलयं याति जगत्पते (देवता का नाम) प्रसादं गृहीत्वा भक्तिभावत:।
सर्वान्कामान वाप्नोति प्रेत्य सायुज्यमाप्नुयात्।।
प्रसाद ग्रहण करने के बाद हाथ को जल से धोएं।
प्रसाद भक्षणात्सर्वलयं याति जगत्पते (देवता का नाम) प्रसादं गृहीत्वा भक्तिभावत:।
सर्वान्कामान वाप्नोति प्रेत्य सायुज्यमाप्नुयात्।।
प्रसाद ग्रहण करने के बाद हाथ को जल से धोएं।
नैवेद्य अर्पण की विधि क्या है ?- षोडशोपचार पूजा में शुरू के नौ उपचारों के बाद
गंध, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य की
उपचारमालिका होती है। नैवेद्य अर्पण करने की शास्त्रोक्त विधि का ज्ञान न होने से
कुछ लोग नैवेद्य की थाली भगवान के सामने रखकर दोनों हाथों से अपनी आंखें बंद कर
लेते हैं जबकि कुछ लोग नाक दबाते हैं। कुछ व्यक्ति तुलसीपत्र से बार-बार सिंचन
करके और कुछ लोग अक्षत चढ़ाकर भोग लगाते हैं। इसी प्रकार कुछ मनुष्य तथा पुजारी
आदि भगवान को नैवेद्य का ग्रास दिखाकर थोडा-बहुत औचित्य दिखाते हैं। नैवेद्य अपैण
करने की शास्त्रीय विधि यह है कि
नैवेद्य
थाली में परोसकर उस अन्न पर घी परोसें। एक-दो तुलसीपत्र छोडें। नैवेद्य की परोसी
हुई थाली पर दूसरी थाली ढक दें।
भगवान के सामने जल से एक चौकोर दायरा बनाएं। उस पर नैवेद्य की थाली रखें।
भगवान के सामने जल से एक चौकोर दायरा बनाएं। उस पर नैवेद्य की थाली रखें।
बाएं
हाथ से दो चम्मच जल लेकर प्रदक्षिणाकार सींचें। जल सींचते हुए सत्यं त्वर्तेन
परिसिंचामि मंत्र बोलें।
फिर
एक चम्मच जल थाली में छो़डें तथा अमृतोपस्तरणमसि बोले।
उसके
बाद बाएं हाथ से नैवेद्य की थाली का ढक्कन हटाएं और दाएं हाथ से नैवेद्य परोसें।
अन्न पदार्थ के ग्राम मनोमन से दिखाएं। दुग्धपान के समय जिस तरह की ममता मां अपने
बच्चो को देती है,
उसी तरह की भावना उस समय मन में होनी चाहिए।
ग्रास
दिखाते समय प्राणाय स्वाहा,
अपानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा, ब्रrणे स्वाहा मंत्र बोलें।
यदि
हो सके तो नीचे दी गई ग्रास मुद्राएं दिखाएं-
प्राणमुद्रा- तर्जनी,
मध्यमा, अंगुष्ठ द्वारा।
अपानमुद्रा- मध्यमा,
अनामिका, अंगुष्ठ द्वारा।
व्यानमुद्रा- अनामिका, कनिष्ठिका, अंगुष्ठ
द्वारा।
उदानमुद्रा- मध्यमा,
कनिष्ठिका, अंगुष्ठ द्वारा।
समानमुद्रा- तर्जनी,
अनामिका, अंगुष्ठ द्वारा
ब्रrमुद्रा- सभी पांचों उंगलियों द्वारा।
नैवेद्य
अर्पण करने के बाद प्राशनार्थे पानीयं समर्पयामि मंत्र बोलकर एक चम्मच जल भगवान को
दिखाकर थाली में छोडें।
एक
गिलास पानी में इलायची पाउडर डालकर भगवान के सम्मुख रखने की भी परंपरा कई स्थानों
पर है। फिर उपर्युक्ततानुसार छह ग्रास दिखाएं। आखिर में चार चम्मच पानी थाली में
छोडें। जल को छोडते वक्त ये चार मंत्र बोलें।
अमृतापिधानमसि,
हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि,
मुखप्रक्षालनं समर्पयामि तथा
आचमनीयं समर्पयामि,
ये
चार मंत्र बोलकर,फूलों को इत्र लगाकर करोद्वर्तनं समर्पयामि
बोलकर भगवान को चढाएं। यदि इत्र न हो तो करोर्द्वर्तनार्थे
चंदनं समर्पयामि कहकर फूल को गंधलेपन करके अर्पण करें।
नैवेद्य
अर्पण करने के बाद वह थाली लेकर रसाईघर में जाएं। बाद में फल, पान का
बीडा एवं दक्षिणा रखकर महानीरांजन यानी महार्तिक्य करें।
देवता की नित्य पूजा का समय सामान्यत: प्रात:कालीन प्रथम प्रहर
होता है। यदि इस वक्त रसोई हो गई हो तो दाल, चावल एवं तरकारी आदि अन्न पदार्थो
का "महानैवेद्य" अर्पण करने में कोई हर्ज नहीं है।किन्तु यदि पूरी रसोई
पूजा के समय तैयार न हो तो चावल में घी-शक्कर मिलाकर या केवल चावल, घी-शक्कर चपाती, परांठा, तरकारी
तथा पेडे का नैवेद्य दिखाएं। यह नैवेद्य अकेला पूजा करने वाला स्वयं भक्षण करे।
यदि संभव हो तो प्रसाद के रूप में सबको बांटे।
नैमित्तिक महापूजा वाला नैवेद्य - नैमित्तिक व्रज पूजा के समय अर्पित
किया जाने वाला नैवेद्य "प्रसाद नैवेद्य" कहलाता है। यह नैवेद्य सूजी
एवं मोदक आदि पदार्थो का बनता है। नैमित्तिक महापूजा के समय संजीवक नैवेद्य के
छोटे-छोटे ग्रास बनाकर उपस्थित मित्रों तथा परिजनों को प्रसाद के रूप में वितरित
करें। अन्न पदार्थो का महानैवेद्य भी थोडा-थोडा प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। कुछ
वैष्णव सभी अन्न पदार्थो का नैवेद्य अर्पण करते हैं परन्तु यह केवल श्रद्धा का
विषय है। वैसे तो भगवान को भी एक थाली में नैवेद्य परोसकर अर्पण करना उचित होता
है। कुछ क्षेत्रों में घर के अलग-अलग स्थानों पर स्थित देवी-देवताओं को पृथक-पृथक
नैवेद्य परोसकर अर्पण किया जाता है। यदि घर के पूजा स्थान में स्थापित
देवी-देवता-गणपति, गौरी एवं जिवंतिका आदि सभी एक जगह हों तो
एक ही थाली से नैवेद्य अर्पण करना सुविधाजनक होता है।
परन्तु यदि नित्य के देवी-देवताओं के अलावा गौरी-गणपति आदि नैमित्तिक देव और यज्ञादि कर्म के प्रासंगिक देवी-देवता पृथक स्थानों पर स्थापित हों तो उनको अलग-अलग नैवेद्य अर्पण करने की प्रथा है। यदि एक थाली में परोसे गए खाद्य पदार्थो का भोग अलग-अलग देवी-देवताओं को चढाया जाए तो भी आपत्ति की कोई बात नहीं है।
परन्तु यदि नित्य के देवी-देवताओं के अलावा गौरी-गणपति आदि नैमित्तिक देव और यज्ञादि कर्म के प्रासंगिक देवी-देवता पृथक स्थानों पर स्थापित हों तो उनको अलग-अलग नैवेद्य अर्पण करने की प्रथा है। यदि एक थाली में परोसे गए खाद्य पदार्थो का भोग अलग-अलग देवी-देवताओं को चढाया जाए तो भी आपत्ति की कोई बात नहीं है।
नैवेद्य
अर्पण करते समय अंशत: का उच्चारण करें। घर में अलग-अलग स्थानों पर स्थापित
देवी-देवता एक ही परमात्मा के विभिन्न रूप हैं। इस कारण एक ही महानैवेद्य कई बार
अंशत: चढाया जाना शास्त्र सम्मत है। इस विधान के अनुसार बडे-बडे मंदिरों में एक ही
थाली में महानैवेद्य परोसकर अंशत: सभी देवी-देवताओं, उपदेवता, गौण देवता एवं मुख्य देवता को अर्पण किया जाता है। कई परिवारों में “वाडी भरने की प्रथा” है। वाडी का मतलब है-सभी देवताओं को उद्देश्य करके नैवेद्य निकालकर रखना
तथा उनके नामों का उच्चारण करके संकल्प करना। संकल्प के उपरांत वाडी के नैवेद्य
संबंधित देवी-देवताओं को स्वयं चढाए जाते हैं। कई बार संबंधित देवताओं के पुजारी,
गोंधली, भोपे या गुरव आदि घर आकर नैवेद्य ले
जाते हैं।
भगवान भैरव का नैवेद्य - भगवान भैरव का नैवेद्य विशिष्ट पात्र में दिया जाता है। इसे पत्तल भरना भी कहा जाता है। वाडी में कुलदेवता, ग्रामदेवता, स्थान देवता, मुंजा मूलपुरूष, महापुरूष, देवचार, ब्राह्मण, सती, नागोबा, वेतोबा, पुरवत तथा गाय आदि अनेक देवताओं का समावेश होता है।
भगवान भैरव का नैवेद्य - भगवान भैरव का नैवेद्य विशिष्ट पात्र में दिया जाता है। इसे पत्तल भरना भी कहा जाता है। वाडी में कुलदेवता, ग्रामदेवता, स्थान देवता, मुंजा मूलपुरूष, महापुरूष, देवचार, ब्राह्मण, सती, नागोबा, वेतोबा, पुरवत तथा गाय आदि अनेक देवताओं का समावेश होता है।
नैवेद्य
को ढंकना सही या गलतक् कुछ मंदिरों में चढाया गया नैवेद्य वैसे ही ढककर रख दिया
जाता है और दोपहर के बाद निकाल लिया जाता है। इसी प्रकार घर में ज्येष्ठा गौरी के
समय नैवेद्य दिखाई थालियां ढककर रख दी जाती हैं तथा दूसरे दिन उसे प्रसाद के रूप
में ग्रहण किया जाता है। ये बातें पूर्णरूपेण शास्त्र के विरूद्ध हैं। व्यवहार में
भी भोजन के बाद थालियां हटाकर वह जगह साफ की जाती है। भगवान को भोग लगाने के बाद
उसे वैसे ही ढककर रखना अज्ञानमूलक श्रद्धा का द्योतक है। कई बडे क्षेत्रों या
तीर्थ स्थानों में पत्थर की मूर्ति के मुंह में पेडा या गुड आदि पदार्थ चिपकाएं
जाते हैं। यह भी शास्त्र के विरूद्ध है।
ये चीजें नैवेद्य नहीं हो सकती। नैवेद्य को अपैण करना होता है। इस रूढि के कारण पत्थर की मूर्ति को नुकसान पहुंचता है। अनेक लोगों के बाहु स्पर्श से ये चीजें त्याज्य हो जाती हैं। उनका भक्षण करने से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है।
ये चीजें नैवेद्य नहीं हो सकती। नैवेद्य को अपैण करना होता है। इस रूढि के कारण पत्थर की मूर्ति को नुकसान पहुंचता है। अनेक लोगों के बाहु स्पर्श से ये चीजें त्याज्य हो जाती हैं। उनका भक्षण करने से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है।
घर
के नयिमित देवी-देवताओं के अलावा “नैथ्मत्तिक” व्रत प्रसंगों के
अवसर पर अन्य देवी-देवताओं की स्थापना अलग-अलग की जाती है।
उदाहरण के लिए सत्यनारायण, गणपति, जिवंतिका, चैत्रा गौरी, ज्येष्ठा
गौरी तथा गुढी आदि देवी-देवताओं को पूजा स्थान में दूसरी जगह स्थापित किया जाता
है।
सभी देवी-देवताओं को महानैवेद्य अर्पण करने के बाद कुछ लोग महारती (महार्तिक्य)
करते समय अलग-अलग आरतियां बोलते हैं
परन्तु एसी आवश्यकता नहीं होती। महानैवेद्य चढाने के बाद पूजा स्थान में रखे
देवी-देवताओं के अलावा अन्य देवताओं की एक साथ आरती करें, यह
शास्त्र सम्मत नियम है। प्रत्येक देवता के लिए अलग-अलग आरती बोलना शास्त्र के
विरूद्ध है।
8. हनुमानजी को घिसे लाल चंदन में केसर - हनुमानजी
को घिसे लाल चंदन में केसर मिलाकर लगाने से अशांति और कलह दूर हो जाते हैं।
9. नैवेद्य में गाय का शुद्ध घी या उससे बने पकवान- इन तीनों
विशेष समय के अलावा जब भी हनुमानजी को जो भी नैवेद्य चढ़ावें तो यथासंभव उसमें गाय
का शुद्ध घी या उससे बने पकवान जरूर शामिल करें। साथ ही यह भी जरूरी है कि भक्त
स्वयं भी उसे ग्रहण करे।
10. अलग-अलग स्वरूप की मूर्ति की उपासना - धार्मिक
आस्था है कि हनुमानजी की अलग-अलग स्वरूप की मूर्ति की उपासना विशेष कामनाओं को
पूरा करती है। इसलिए हनुमानजी के मंत्र जप या किसी भी रूप में इस तरह भक्ति करें
कि अगर नेत्र भी बंद करें तो हनुमानजी का वहीं स्वरूप नजर आए। यानी हनुमान की
भक्ति पूरी सेवा भावना, श्रद्धा व आस्था में डूबकर करें।
11. पांच बत्तियों का दीपक और दीपक मंत्र - शाम के
वक्त हनुमानजी को लाल फूलों के साथ जनेऊ, सुपारी अर्पित करें
और उनके सामने चमेली के तेल का पांच बत्तियों का दीपक नीचे लिखे मंत्र के साथ
लगाएं –
साज्यं च वर्तिसं युक्त वह्निनां योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश प्रसीद परमेश्वर।
यह
उपाय किसी भी विघ्र-बाधा को फौरन दूर करने वाला माना जाता है।
12. श्रीहनुमान चालीसा की चौपाई का स्मरण- श्रीहनुमान
चालीसा या इसकी एक भी चौपाई का पाठ हनुमान कृपा पाने का सबसे सहज और प्रभावी उपाय
माना जाता है। इसलिए पूर्णिमा तिथि पर जब भी घर से बाहर निकलें तो श्रीहनुमान
चालीसा की इस चौपाई का स्मरण कर निकलें-
जै जै जै हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरुदेव की
नाई।
इस
हनुमान चालीसा के स्मरण भर से बाहर न केवल अनहोनी से बचाता है, बल्कि
मनचाहे काम व लक्ष्य भी पूरा करता है।
13. हनुमान के साथ श्रीराम-जानकी की मूर्ति रख उपासना
करें -
रुद्र अवतार श्रीहनुमान की उपासना बल, बुद्धि
के साथ संपन्न भी बनाने वाली मानी गई है। शास्त्रों में श्री हनुमान को विलक्षण
सिद्धियों व 9 निधियों का स्वामी भी बताया गया है, जो उनको पवित्र भावों से की प्रभु राम व माता सीता की सेवा व भक्ति द्वारा
ही प्राप्त हुई। इसलिए शरद पूर्णिमा पर हनुमान के साथ श्रीराम-जानकी की मूर्ति रख
उपासना करें और इस मंत्र का स्मरण कर सुख-सफलता व समृद्धि की कामना पूरी करें –
मनोजवं मारुततुल्यं वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।
14. शरद पूर्णिमा पर महिमा पाठ करें - हनुमानजी
शिव के अवतार हैं और शनिदेव परम शिव भक्त और सेवक हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा पर शनि
दशा या अन्य ग्रहदोष से आ रही कई परेशानियों और बाधाओं से फौरन निजात पाने के लिए
श्रीहनुमान चालीसा, बजरंगबाण, हनुमान
अष्टक का पाठ करें। श्रीहनुमान की गुण, शक्तियों की महिमा से
भरे मंगलकारी सुन्दरकाण्ड का परिजनों या इष्टमित्रों के साथ शिवालय में पाठ करें।
यह भी संभव न हो तो शिव मंदिर में हनुमान मंत्र ‘हं हनुमते
रुद्रात्मकाय हुं फट्’ का रुद्राक्ष माला से जप करें या फिर
सिंदूर चढ़े दक्षिणामुखी या पंचमुखी हनुमान के दर्शन कर चरणों में नारियल चढ़ाकर
उनके चरणों का सिंदूर मस्तक पर लगाएं। इससे ग्रहपीड़ा या शनिपीड़ा का अंत होता है।
15.
पूर्णिमा पर पूर्ण कलाओं के साथ उदय होने वाले चंद्रमा की रोशनी नई
उमंग, उत्साह, ऊर्जा व आशाओं के साथ
असफलताओं व निराशा के अंधेरों से निकल नए लक्ष्यों और सफलता की ओर बढऩे की प्रेरणा
देती है। लक्ष्यों को भेदने के लिये इस दिन अगर शास्त्रों में बताए श्रीहनुमान
चरित्र के अलग-अलग 12 स्वरूपों का ध्यान एक खास मंत्र स्तुति
से किया जाए तो आने वाला वक्त बहुत ही शुभ व मंगलकारी साबित हो सकता है। इसे हर
रोज भी सुबह या रात को सोने से पहले स्मरण करना न चूकें –
हनुमानञ्जनी
सूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट:
फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोमितविक्रम:।।
उदधिक्रमणश्चैव
सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता
च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं
द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले
प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
तस्य
सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।।
इस
खास मंत्र स्तुति में श्री हनुमान के 12 नाम उनके गुण व शक्तियों को भी
उजागर करते हैं । ये नाम है – हनुमान, अञ्जनी
सूनु, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट यानी श्रीराम के प्यारे, फाल्गुनसख यानी
अर्जुन के साथी, पिंङ्गाक्ष यानी भूरे नयन वाले, अमित विक्रम, उदधिक्रमण यानी समुद्र पार करने वाले,
सीताशोकविनाशक, लक्ष्मणप्राणदाता और
दशग्रीवदर्पहा यानी रावण के दंभ को चूर करने वाले।
.......................................................................................................................................
अपना परामर्श और जानकारी इस नंबर +919723187551 पर दे सकते हैं।
धर्मप्रेमी दर्शन आपकी सेवा में हाजिर है सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि
पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।- पेपसिह राठौङ तोगावास
रोचक और अजीब संग्रह आपके लिए.....
सभी धर्म
प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।
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