इस मंदिर में एक साथ होता है श्री हनुमान और
राक्षस पूजन पंच कुइयां मंदिर, झांसी
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मंदिर में एक साथ होता है श्री हनुमान और राक्षस पूजन पंच कुइयां मंदिर, झांसी |
झांसी
शहर (उत्तर प्रदेश) के पंचकुइयां क्षेत्र में है एक अद्भुत चिन्ताहरण हनुमान
जी का मंदिर है। इस मंदिर में देव और
दैत्य एक समान हैं। मंदिर
इसलिए विशेष है क्योंकि यहां इस मंदिर में हनुमान जी के साथ दो राक्षसों का भी
पूजन किया जाता है और यह दो राक्षस हैं, रावण के दो प्रिय “अहिरावण और महिरावण”। मंदिर में स्थापित हनुमान जी का श्री रूप श्री रामायण के लंकाकांड में
हनुमान जी द्वारा अहिरावण और महिरावण वध की कथा को बयां करते हैं। श्रीराम
के परम भक्त हनुमान जी का यह मंदिर चिन्ताहरण हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध
है।
पुरातत्वविदों के मतानुसार, चिंताहरण हनुमान जी का यह मंदिर लगभग 300 वर्ष
पुराना है। हनुमान जी का श्री रूप पांच फुट ऊंचा है। उनके कंधे पर श्रीराम और
लक्ष्मण जी विराजित हैं तथा पैरों तले एक तांत्रिक देवी “लंकिनी
देवी’ को कुचलते हुए दिखाया गया है साथ ही। इस प्रतिमा में
लंकिनी, हनुमान जी से क्षमा मांगते हुए देखी जा सकती हैं।
साथ ही अहिरावण और महिरावण की प्रतिमाएं भी हैं
अहिरावण और महिरावण की प्रतिमाएं भी हैं। तथा
पैरों तले एक को कुचलते हुए दर्शाया गया है,इस प्रतिमा में
तांत्रिक देव की मां हनुमान जी से क्षमा मांगते हुए नजर आती हैं।
प्रतिमा के दाएं ओर हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज भी है। मंदिर में प्रत्येक सोमवार और मंगलवार को भक्त आटे का दिया जलाकर अपने मन की इच्छाओं को पूर्ण करवाने के लिए प्रार्थना करते हैं। जब उनके मन की इच्छा पूर्ण हो जाती है तो चढ़ावा अर्पित किया जाता है। हैरान करने वाली बात यह है की मंदिर में चढ़ने वाला चढ़ावा हनुमान जी के साथ-साथ दोनों राक्षसों के लिए भी होता है। मंदिर की किसी भी प्रतिमा को छूने की इजाजत किसी को भी नहीं है।
लोक मान्यता के अनुसार इस मंदिर में लगातार पांच मंगलवार तक आटे का दिपक अर्पित करने से भक्तों के सारे दुख-दर्द और कष्ट-संकट मिट जाते हैं और उनकी इच्छा पूर्ण हो जाती हैं।
भगवान राम और रावण का युद्ध जोरों पर था। रावण का भाई अहिरावण तंत्रों-मंत्रों का ज्ञाता एवं मां भवानी का परम भक्त था। उसने अपने भाई रावण की सहायता के लिए भगवान राम और लक्ष्मण का अपहरण कर लिया और उन्हें निद्रावस्था में ही पाताल-लोक ले गया। वहां ले जाकर वह उनकी बली देना चाहता था।
हनुमान जी को जब भगवान के पाताल लोक में होने का ज्ञात हुआ तो वह तत्काल पाताल लोक में पहुंच गए। पाताल लोक के द्वार पर मकरध्वज हनुमान जी का बेटा रक्षक रूप में पहरा दे रहा था। मकरध्वज से युद्ध कर उसे पराजित कर जब वह पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्री राम एवं लक्ष्मण जी को बंधक-अवस्था में पाया। वहां अलग-अलग दिशाओं में पांच दीपक जल रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्री राम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी थी। जैसे ही अहिरावण ने अपनी कुल देवी को राम-लक्ष्मण की बलि देने के लिए तैयारी की, तभी हनुमान जी ने कुल देवी को अपने पैरों के नीचे कुचल दिया और अहिरावण-महिरावण को भी मार डाला।
इस वृतांत के बाद हनुमान जी को चिन्ताहरण नाम से जाना जानें लगा। मंदिर में दर्शनों के लिए आने वाले भक्तों की मान्यता है कि जैसे हनुमान जी भगवान राम की कृपा से उनकी चिंताएं हर लेते थे उसी प्रकार वह उनकी भी चिंताओं का निवारण करेंगे। प्रतिमा के दाएं ओर हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज भी है। मंदिर में चढ़ने वाला चढ़ावा हनुमान जी के साथ-साथ दोनों राक्षसों के लिए भी होता है। मंदिर की किसी भी प्रतिमा को छूने की इजाजत किसी को भी नहीं है।
प्रतिमा के दाएं ओर हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज भी है। मंदिर में प्रत्येक सोमवार और मंगलवार को भक्त आटे का दिया जलाकर अपने मन की इच्छाओं को पूर्ण करवाने के लिए प्रार्थना करते हैं। जब उनके मन की इच्छा पूर्ण हो जाती है तो चढ़ावा अर्पित किया जाता है। हैरान करने वाली बात यह है की मंदिर में चढ़ने वाला चढ़ावा हनुमान जी के साथ-साथ दोनों राक्षसों के लिए भी होता है। मंदिर की किसी भी प्रतिमा को छूने की इजाजत किसी को भी नहीं है।
लोक मान्यता के अनुसार इस मंदिर में लगातार पांच मंगलवार तक आटे का दिपक अर्पित करने से भक्तों के सारे दुख-दर्द और कष्ट-संकट मिट जाते हैं और उनकी इच्छा पूर्ण हो जाती हैं।
भगवान राम और रावण का युद्ध जोरों पर था। रावण का भाई अहिरावण तंत्रों-मंत्रों का ज्ञाता एवं मां भवानी का परम भक्त था। उसने अपने भाई रावण की सहायता के लिए भगवान राम और लक्ष्मण का अपहरण कर लिया और उन्हें निद्रावस्था में ही पाताल-लोक ले गया। वहां ले जाकर वह उनकी बली देना चाहता था।
हनुमान जी को जब भगवान के पाताल लोक में होने का ज्ञात हुआ तो वह तत्काल पाताल लोक में पहुंच गए। पाताल लोक के द्वार पर मकरध्वज हनुमान जी का बेटा रक्षक रूप में पहरा दे रहा था। मकरध्वज से युद्ध कर उसे पराजित कर जब वह पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्री राम एवं लक्ष्मण जी को बंधक-अवस्था में पाया। वहां अलग-अलग दिशाओं में पांच दीपक जल रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्री राम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी थी। जैसे ही अहिरावण ने अपनी कुल देवी को राम-लक्ष्मण की बलि देने के लिए तैयारी की, तभी हनुमान जी ने कुल देवी को अपने पैरों के नीचे कुचल दिया और अहिरावण-महिरावण को भी मार डाला।
इस वृतांत के बाद हनुमान जी को चिन्ताहरण नाम से जाना जानें लगा। मंदिर में दर्शनों के लिए आने वाले भक्तों की मान्यता है कि जैसे हनुमान जी भगवान राम की कृपा से उनकी चिंताएं हर लेते थे उसी प्रकार वह उनकी भी चिंताओं का निवारण करेंगे। प्रतिमा के दाएं ओर हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज भी है। मंदिर में चढ़ने वाला चढ़ावा हनुमान जी के साथ-साथ दोनों राक्षसों के लिए भी होता है। मंदिर की किसी भी प्रतिमा को छूने की इजाजत किसी को भी नहीं है।
कहते हैं कि इस मंदिर में लगातार पांच मंगलवार तक
आटे का दीपक अर्पित करने से भक्तों के सारे दुख-दर्द और कष्ट-संकट मिट जाते हैं
और उनकी इच्छा पूर्ण हो जाती हैं।
सभी धर्म प्रेमियोँ को
मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।
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